मनोरंजन पुस्तकमाला१३ | Manoranjan Pustakmala-13

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Manoranjan Pustakmala-13 by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ ) अफसर हुए तो उन्होंने मुसलभानों से एक किला जीत कर अपने राजा को दे दिया। इसके अनंतर सांगली की ओर से' राजदूत नियुक्त होकर वे अंग्रेजी सरकार मे रहने लगे । राजा ने इनको जागीरे दीं। ये &५ वर्ष की अवस्था में अंत समय ` तक देश्वर की उपासना करते हुए परत्लोक को सिधारे | अप्पा जी की माता कृष्णावाई के [विषय में यह प्रसिद्ध हे कि उनकी संतान बचती नहीं थी । इस पर उन्होने बारह घर्ष तक श्नेक त किए । थे प्रति दिन पीपल और गाय की परि. कमा करतीं और गोमूत्र मेँ धे इए গাই की रोरी लातीं | रानडे के पूवजो का जो संक्षिप्त वृत्तांत ऊपर खिखा गया है उससे स्पष्ट है कि जिस परिवार में वे उत्पन्न हुए थे उसमें कई पुरुष पराक्रमी, धर्मनिष्ठ और शाख्वेत्ता थे । ` बाल्यावस्था में रानडे बड़े शरमाऊ ओर बोदे मालूम होते थे। वे अपने पिता और दादा से दूर रहते थे। उन्होंने अपने दादा अमृतराब से सब से पहले २२ वर्ष की अधया में एम, ए, पद: लत करने के उपरांत वार्तालाप किया था। औरों से भी वे बहुत कम बात चीत करते थे। एक वेर इनकी मातां गोपि- काबाई बैलगाड़ी पर इनको कोल्हापुर ले जा रहो“थीं। राक्ि का समय था । अन्लुमान दो बजा था। मार्ग ऊँचा नीचा था। गाड़ी को धक्का लगने से ये नीचे गिर पड़े। सब लोग सोए हुए थे, गाड़ी आगे की ओर चली जा रही थी । किसी को इस घटना की सूसता मो तहीं हुईं। रानडे की अवस्था उस समय ढाई




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