रशिमरथी | Rashimarthi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
14 MB
कुल पृष्ठ :
196
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम सगे
पूछो मेरी जाति; शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से,
रवि-समान दीपित ललाट से, और कवच-कुरडल से ।
पढ़ो उसे जो. कलक रद है सुकमें तेज-प्रकाश,
मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास ।
जुन बड़ा वीर कत्रिय है तो श्वागे वद्द ओावे,
चत्रिपत्व का तेज जरा मुझको भी तो दिखलावे ।
भी छीन इस राजपुत्र के कर से तीर-कमान,
झपनी महाजाति की दूँगा में तुमको पहचान |”
कृपाचायं ने कद्दा-“वृथा तुम क्रद्ध हुए लाते हो,
साघधारस-सी बात, उसे भी समम नहीं पाते दो |
राजपुत्र से लड़े बिना होता दो अगर 'झकाज,
र्जित करना तुम्हें चाइिए पहले कोई राज |”
करों हतप्रभ हुआ तनिक, सन-द्ी-मन कुछ भरसाया ;
सन सका अन्याय, सुयोधन बढ़कर आगे थ्ाया ।
बोला--“बड़ा पाप है करना इस प्रकार; अपमान,
उस सर का जो दीप रहा हो, सचमुच, सूय-समान |
मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का; वीरों का,
घनुप छोड़कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का ?
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर. श्र,
जाति-जाति का शोर मचाते केवल कायर, कूर ।
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