सचित्र ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र | Sachitr Gyatadharmkathang Sutr

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सचित्र ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र  - Sachitr Gyatadharmkathang Sutr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अमर मुनि - Amar Muni

Add Infomation AboutAmar Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
5 $५. 5 & &. ($८ 00 রে € ८2 कर ॐ बै ~ $ = क ~, ॐ ও ভিডি ~ ॐ >< न का ५ ॐ ॥ = ५ = + = 1 1 प 1८ 1 1 ক ४ १५ क { শা मूल पाठ मे वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक अशो को अनेकानेक बार दोहराए जाने की शैली का प्रयोग हुआ है। अनुवाद में इन्हे यथासभव संक्षिप्त किया है तथा 'पूर्वसम' आदि गितो का प्रयोग किया गया है। चित्रो को अधिक सुगमता से बौधगम्य बनाने के लिए चित्र-शीर्षक के स्थान पर प्रत्येक चित्र के पीठे तत्सबधित कथा-प्रसग संक्षेप मे दिया गया है। अध्ययन के अन्त मेँ विशेष शब्दो का स्पष्टीकरण एव उपसहार तथा दीका मे आई हई उपनय गाथाएँ भी ले ली हैं। इस प्रकार सम्पादन मेँ सर्वागता लाने का प्रयास किया है। रिण एव परिशिष्ट की शैली मुझे कम पसन्द है, क्योकि उससे पाठक को इधर-उधर पृष्ट उलटने पड़ते है। अत प्रत्येक अध्ययन से सम्बन्धित सभी सामग्री वही एक स्थान पर देने का प्रयास किया है। आशा है पाठको को यह शैली अधिक सुन्दर व रुचिकर लगेगी। कृतज्ञता प्रदर्शन परम पूज्य गुरुदेव उ भा प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज के असीम आशीवदि से सचित्र आगम प्रकाशन का यह कार्यक्रम निर्विघ्न रूप से गति पकड रहा है यह मेरे लिए परम प्रसन्नता का विषय है। इस प्रकाशन मे सघ शिरोमणि स्व श्री पद्मश्री जी म की सुशिष्या उपप्रवर्तिनी श्री पवन कुमारी जी म तथा साध्वी रत्नाश्री प्रवेश कुमारी जी म की सुशिष्या तप-चक्रेश्वरी महामती उपप्रवर्तिनी श्री मोहनमाला जी के ११२ व्रतो (उपवास) के उपलक्ष्य मे श्रुत-सेवा के शुभ कार्य हेतु अनेक गुरुभक्त उदार सद्गृहस्थो ने अपना सहयोग करके गुरुभक्ति ओर श्रुतभक्ति का परिचय दिया है तथा शाम्त्र-सेवा का पुण्य उपार्जन किया है। यह सभी के लिए अनुकरणीय है। साहित्यकार श्रीचन्द जी सुराना ने सदा की भौंति इसके सम्पादन, मुद्रण मे अपनी सम्पूर्ण बौद्धिक-चेतना को नियोजित किया है तथा श्रीयुत सुरेन्द्र जी बोथरा ने सुन्दर सटीक अग्रेजी अनुवाद के साथ सपादन सहयोग करके इसकी उपयोगिता मे चार चोद लगाये है। मै सभी के प्रति हार्दिक भाव से कृतज्ञ हू। আম मुनि এ का ^, ঠা = पनर ~ । | 2 ^ পি 4 ८ ২4 ~< ९५ है ५ (11)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now