वाक्य जाल | Vakya Jaal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( पृष्ठ ट २६-शुभाशुभ भाव (दुल स्वभापी सं० विषय १०५ ३०-युद्ध निश्चय नय से आरात्माकर्ता भोक्ता है या वड्दी | १०१ ३१-भाव कर्म दो प्रकार के है | १०२ ३२-कमे उदय से भाव और भाव से वन्धनतवमोक्ष कैसे होगा !१०२ ३३-त्रत तप विना मोक्ष हो सकती है ! १०३ ३४-क्या व्यवहार रत्नत्रय पाप मय है | १०४ ३५-क्या कम का उदय च्युतिका कारण नही है ! १०५ ` ३६-कषाय प्रौर मलीनता मे क्‍या अन्तर है ! १०६ ३७-क्या कृष्ण लेश्या नरक गति का गरी ठन्ध करते है ! १०७ इप-लेश्या विसे कहते है १०७ श्रीमान ब्रह्मचारी चुन्नीलाल जी देसाई द्वारा लिखित पुस्तक सम्य क्त्व मे जानने योग्य सिद्धान्तिक वाते १८७ है जिसका अलग विषय देना श्रशक्य है देखे पृष्ठ ११० से २४७ । श्रीमान क्ष्‌लकजी जिनेन्द्र कूमारजी बरणौ लिखित नयवपैण' १५ ) स० विषय, ग्रन्थ मे जानने योग्ये-विशेष-रवतिं । २४९ , १-क्या निश्चय सम्यग्दष्क ही ज्ञान करने मै वाहय निमितहोते ই! २५९१ २-आत्मा ज्ञान स्वरूप होने से दशेन चारित्र वीर्चादि ज्ञान स्वरूप है २५३ ३-प्रत्यक्ष और परोक्ष ज्ञान की विचित्र परिभाषा २५४ ४-प्रत्यक् ज्ञान स्वभाविक ग्रहरा करते है ग्रौर परोक्ष ज्ञान कृचरिम ग्रहण करते हू । २५५ भ-ज्ञान द्धो का समुदाय हैया प्रद्धहै। २५६ ६-अखण्ड को ग्रहण करे वह प्रत्यश्र ज्ञान । २५७ ७-श्रोताओ ॐ ज्ञान पर पर यक्ता श्रनेकान्त चित्रण वना पाता | এর और चारित्र भिन्‍त-भिन्‍न नदे है । ६-पात तत्वों का विचित्र रूप । १०-प्रजीव तत्व जवका क्लकहै। ११-प्रत्यक्ष ज्ञान और पणशोक्ष ज्ञान की पॉरभाषा। बा १२-नभो का प्रयोग सम्यस्हष्टि ही कर सकते है।




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