तुलसी के चार दल पुस्तक पहली | Tulsi Ke Chaar Dal Part
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गास्वामी तुलसीदास का जीवन-इत्त
मीराबाई के पद के संबंध मे भी इसी प्रकार की एतिहासिक `~“
समीक्षा की गई है । मीराबाई का कथित पद शरीर गोस्वामीजी का
कथित उत्तर किसी भी पुस्तक से सिलल सकता है। संक्षिप्त मूल
गोसाई'चरितः मे इस घटना को माना है দহন संवते मे जव तक
লাই नया हेर-फेर न होगा तव तक इतिहासकार इस घटना को
स्वीकार न करेगे | पं० रामचंद्र शुक्ष इस घटना की ते ठीक नहीं सानते
परंतु रन्यत्र न्य उक्तियो के साथ गास्वामीजी के मीरा का दिए हुए
उत्तर को भी उद्धृत करके उन्नके समाज-आदशे की समीक्षा करते हैं।
गोस्वासीजी की चार कृतियों की रचना-काल-संबंधी आलोचना
इस पुस्तक मेँ अन्यत्र की गड है! अन्य रचनाओं के रचना-काल
की समीक्षा का यह स्थल नहीं है। क्ृष्ण-गीतावली? और “राम-
गीतावली? की रचना का प्रोत्साहन, 'संज्षिप्त सूल्त गेोसाई'चरितः के
अनुसार, दे बालकों के कारण हुआ। वे प्रतिदिन पदों का कंठ
करके सुनाया करते थे |
अपने पर्यटन-काल्न में गेा।स्वामी तुलसीदास ने अवधपुरी पहुँचकर
रामचरितमानस लिखते का विचार किया । रामचंद्रजी के जन्म-
दिन का ठीक योग संबत् १६३१९ से पड़ा। इसी दिन गोस्वामीजी
ने रामायण आरभस कर दी । यह संवत् (मानसः मे दिया हुश्रा है ।
अनुमान यह किया जाता है कि अरण्यकांड के लिखने तक
योस्वामीजी अयोध्या में रहे और बाद से काशी चल्ले गए।
किपष्किंधाकांड का आरंभ काशी मे ही हुआ । किष्किधाकाड को
प्रारभर्मे काशीका वैन मिलतादै। यं की समाप्ति-तिथि
का उल्लेख “संच्िपत मूल गोसाईै चरितः मे है; कितु गणना की
समीक्षा मे वह ठीक नहीं उतरती ।
इस सथान पर हमे गोस्वासीजी के श्रन्य प्रथो की समीत्ता नहीं
करनी है। अतएवं सानसः? के संबंध मे भी कुछ न कहकर हम
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