सिंघी जैन ग्रंथमाला | Singhi Jain Granthamala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
393
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रास्ताविक ३
श्वेताम्बर ओर दिगम्बर दोनो संप्रदायो के कुष्टं ग्रन्थौ का समान रूपमे प्रकाशन किया
जाता है, तथापि उस ग्रन्थमाला का ध्येय शुद्ध साहिल्िक न होकर उसका ध्यय धार्मिक
है। उसके पीछे जो प्ररणा है वह एक अंश में असांग्दायिक होकर भी, दूसरे
अश में बहुत कुछ सांप्रदायिक है। वह श्रीमद् राजचन्द्रजी के एक नये अतएव एक
तीसरे ही संप्रदाय का प्रभाव, प्रकाश ओर प्रचार करने की इृष्टि से प्रकट की जाती
है। सिंघी जैन ग्रन्थमाला के पीछे ऐसा कोई संकुचित हेतु नहीं है | इसका हेतु विशुद्ध
साहिल्य-सेवा और ज्ञानज्योति का प्रसार करना है। जेन घर्म के पूर्वकालीन समर्थ
विद्वानू अपने समाज और देश में, ज्ञानज्योति का प्रकाश फैलाने के लिये, यथाशक्ति
अनेकानेक विषयों के जो छोटे बड़े अनेकानेक ग्रन्थनिवन्धन रूप दीपकों का निर्माण
कर् गये हें, लेकिन देश काल की भिन परिशथितिके कारण, अब वे वेसे क्रियाकारी
न हो कर निर्वाणोन्मुखसे वन रहे हैं, उन्हीं ज्ञानदीपकों को, इस नवयुगीन-प्रदर्शित
नई संशोधनपद्धति से सुपरिमार्जित, सुपरिष्कृत ओर सुसज्जित कर, समाज ओर देश के
प्रॉगण में प्र्थापित करना ही इस ग्रथमाला का एक मात्र ध्येय है । समाज आर देश
इससे तत्तद् विषयों में उद्दीत और उज्ज्वल ज्ञान प्रकाश प्राप्त करे ।
3 ६3 =
प्रस्तुत अन्थके संपादक ओर संपादन कार्य के विषय में पंडितवर श्रीसुखलाल जी
ने अपने वक्तब्य में यथेष्ट निर्देश कर दिया है। एक तरह से पंडित्जी के परामश से ही
इस ग्रन्थ का संपादन कारय हुआ है। संपादक पंडित श्री महेन्द्रकुमार जी अपने विषय
के आचाये हैं और तदुपरान्त खूब परिश्रमशील और अध्ययनरत अध्यापक हैं। आधु-
निक अन्वेषणात्मक और तुलनात्मक इष्टि से विषयों ओर पदार्थों का परिशीलन करने में
यथेष्ट प्रवीण हैं । दाशनिक, सांप्रदायिक और वैयक्तिक पूर्वग्रहों का पच्षपात न रख
कर तत्त्वविचार करने दी दरौली के अनुगामी हँ । इससे भविष्यमें हमं इनसे जैन
साहित्य के गंभीर आलोचन-प्रत्याछोचन की अच्छी आशा है ।
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मन्थ के उपोद्ातरूप जो विस्तृत निबन्ध राष्ट्रभाषा में लिखा गया है, उसके
अवलोकन से, जिज्ञासुओं को ग्रन्थगत हाद का अच्छी तरह आकलन हो सकेगा, और
साथ में बहुत से अन्यान्य तात्तिक विचारों के मनन और चिन्तन की सामग्री भी इस-
में उपलब्ध होगी | अन्थकार भट्ट अकलंकदेव के समय के बारे में विद्वानों में कुछ
मतभेद चला आ रहा है | इस विषय में पंडितजी ने जो कुछ नये विचार ओर तकं
उपस्थित किये है उन पर तज्ज्ञ विद्धान् यथेष्ट ऊहापोह करें| हम इस विषय में अभी
अपना कुछ निर्णायक मत देने में असमर्थ हैं। प्रध्तावना के पृू० १४-१५ पर पंडितजी
ने नन््दीचूर्णि के कर्तृवव के विषय में जो शंका प्रदर्शित की है-वह हमें संशोत्रनीय
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