उन्नति का सिद्धान्त | Unnati Ka Siddhant

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Book Image : उन्नति का सिद्धान्त  - Unnati Ka Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपने उपरोक्त कथन के पक्ष में हम पहले यही आनने की चेशा करते हैं कि चुलोक और प्रथियी के उत्पक्ष होने में यह सिद्धांत कहाँ तक खत्य प्रतीत होता है। हम थोड़ी देर के लिये यह बात मान लेते हैँ कि सूर्य ओर अन्य भह जिस पदार्थ के बने हुए हैं वह किसी समय में भाप के परमाणुओं री मति विस्तृत अवस्था मै था ओर इन परमाणुओं की पारस्परिक आकर्षण-शाकति के कारण चरे धीरे यह विस्वात परमाणु एक दुसरे के पास आते गये क्षयवा उन परमाणुओं के वीच बहुत कम अन्तर रह गया | अंग्रेजी में इस कब्पना का नाम नीहारिकावाद्‌ है। इसके अनुसार चुकोक अपनो आदिम अवस्था में अभियमितरूप से घिस्तुत ओर विकाररद्धित माध्यम था। अतेः उसके तापकऋम, मुरं आदिक भौतिक शुणों में समानता मोजूद थी। परमाणुओं के खंशलेषण के काशण इस युछोक के अंतरंग ओर बाह्यांग क तापक्रम ओर शुरुत्प में समानता का नाश होकर विकार उत्पन्न होने से विभिन्नता का प्रादुभोच हो গাথা । संश्लेषण द्वारा जो बाहरी भाम कन्द की ओर दवे प्रारम्भ हये तो इसका परिणाम यह डुआ कि इख श्युखोक मे सपे केन्द्र के चारों ओर জিচ্ধ भिन्न कोणगतियों से घूमने की नयी शक्ति उत्पक्च हो मई}




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