साहित्य - पथ | Sahitya-path
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= ५ ~~
नहीं जान पड़ती ओर न, इसी कारण, उन्हें इस प्रसंग में उतना महत्व
हैं। दिया जा सकता है | इन तीनो में से सिद्धो की सवनाओं की और पहले
ही से संकेत किया जा चुका है, जैन कवियों के प्रवन्ध-काव्य वहुधा “चरिंड!
( चरित ) के नाम से अमिद्वित किये जाते थे जिनमें प्रायः शांत एवं
शगार स्स को उदाहत करने वाले वर्णनों का समावेश रहता था और
उनकी अन्य अनेक रचनाओं के अ्रन्तर्गत बतों और नीतिपरक उपदेश की
चर्चा की गई रहती थी । इसी प्रकार चारण कवियों की स्वनाएँ प्राय:
सामंती के प्रम-ब्याणर एवं युद्ध-सम्बंधी घटनाओं से ही भरी रहा
करती धीं |
अपभ्रश काव्य-साहित्य की ये तीनों ही परंपराएँ हिन्दी में आयी
आर विकसित होती गई । सिद्धों की फुटकर रचनाओं में निहित प्रवृत्तियों
का सवधम हिन्दी के लाथ कबियों से अपनाकर उन्हें झाग बढ़ाया | ये
नाथपंथी कवि सिद्धी जैसे नास्तिक नहीं थे, किलु इनमें उनकी अन्य विचार-
बाराण प्रायः उसी प्रकार प्रकट होती दीख पड़ी ) इन्होंने धार्मिक जीवन में
बढ़ते हुए पाखंडों एवं श्र म्बरो का उसी प्रकार विशेध किया तथा बाह्य
वातों के कारण बढ़ते जाने वाले भेदभाव को भी रोकना चाहा | परन्तु
इन्हीने उसके साथ ही अपनी स्वनाओ द्वारा योग-साधना के माध्यम से
मभाप्त किये जाने वाले आत्ग-तत्व के शान का उपदेश देकर जिस मबीन
तथ्य की श्रवतारणा का दी वह उस प्रचलित रचना-शैली के लिए प्रपूरय
वस्तु थी | नाथपंथी कवियी ने इस प्रकार उस “परंपरा” में इसके आधार
पर हक तथा अबो्ग! किया। फिर हम देखते हैं कि उस पुरानी कथन»
হাতা কা पीछे कबीर, मानक ओर दादू जैसे संत कवियों ने भी अपनाया ।
आर जिस प्रकार नाथपंथियों ने सिद्धी के दोहों तथा चर्याप्दों की जगह
` केमशः सब्दियों? एजं 'पढो! की सृष्ठि की थी, प्रायः उसी प्रकार इस *
सुतौ ने भी अपनी बानियों में क्रशः साखियों? एवं शब्दों! का.
व्यवहार किया रौर उनके कार्यं को परस्पा प्रदानं को | संतों ने शिद्धी के.
. सहज! और 'श॒त्य को ताथपंथियों . की ही भाँति अहरा किया और.
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