राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला | Rajasthan Puratan Granthmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
447
श्रेणी :
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No Information available about पुरातत्त्वाचर्या जिनविजय मुनि - Puratatvacharya Jinvijay Muni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ६ ]
पत्षम प्रकरण प्रन्यका प्रतिम प्रकरण है। इसमें प्रस्पाकारने एक राज
स्पानी छद विश्षेप निर्सामोका वणुन बरते हुए इसके मुख्य वारह भेरोंकि साथ
द्ये मेदोपभर्नेका पथा एक माभिक् छद कृडलाका मी वर्णान गिया है।
प्रकरणके प्रारम्ममे प्रथम मिसांमीके सभर्मोको वेकर उलाषटर्णोको प्रस्तुत
जिया है। फिर रामगुण-गापा गति हृए निर्साणीके भ्रमय मर्दोका उत्तम
रीतिसे वर्णन गिया । प्रक्रणके प्रत्मे कविमे श्रपनो बंधपरम्पराफा
परिणय देकर प्रथको समाप्त ছিমা है। स्वयम् क्वि द्वारा दिए गये इस
य्त-परिचयसे कविके जयन पृत्तनो जानतेमें बहुत सहायता प्राप्स होती है।
प्रभ्य रना-कालत
इस प्रथो रचमाका प्रारम प्रीर समाप्ति सम्बधो स्वय कविने
प्रपने वघ्ठ-परिषयके पद्चात् एक छप्पय कवित्त इस प्रकार दिया है जिससे पसा
घन्तता है कि मह ग्रध वि स १८८ बी माध शुक्ला चतुर्थी युघवारको प्रार्म
किया गया था । बविते पपनी मुग्र वुदि प्रौर प्रवृ ज्ञानके सहारे वि स १८८१के
प्राएिबन् छुष्सा विजयादप्षमी घनिवारकों ग्रथ पूणा रूपसे तैमार बर লিমা।
प्रन्थ रघमाके सम्वम्पमें स्वय झविने पपने प्रस्पने समाप्ति प्रदरणमे सिखा है--
छप्पय रवित्त
उदियापुर क्षापांण रण भीमागठ रागव ।
कबरां-मुण्ट'जबॉगद भीत मन जप मीमाजणत॥
पट्टं पै धमत बर्स धैधिपौ माह पुद।
হুদা तिप चोप हुषो प्रारम्म प्न्य द्व ॥
पटा ঘন प्याणिपे ঘুষ प्रामोड षणिपो।
शमि जिजैद॒समी रपुबए सुजस विस! सुकवि सुमणस श्यौ ५
भूमिका समाप्त करनेके पूर्व हम राजस्पान प्राध्यविद्या प्रतिप्टानके प्रति
झ्रामार प्र*छित किए बिना नहीं रह सबते । कारण वि प्रतिष्ठान एम प्रफारे
प्रमूस्य प्रग्य जो साहिएपणों प्रप्नाप्य निधि हैं “राजस्पान पुरातन प्रस्पमासा के
प्रन्वर्गद प्रमाणित गर साहित्यवे कसबरशों बढ़ानेमें रत प्रपस्नशोस है।
प्रस्तुत प्रन््यशों इस छूपमें प्रकाशित बरानेया श्रेय श्रदय मुनिवर
श्ीजिनविजयपकीको है তিন্নি হাঅন্যাদী ছুশ্শাহধপ্ন प्मून्यश्रया
परराम राजस्पान पुरातन प्रधमाणा द्वार करता स्वाष्ार व्या ।
थ्रीगोपाएनारायशजों बहुरा एम ए वे थीपुरपोसेमसासजों मेनारिया एम ए
प्री गाहिएएरललबा भी पूर्णो हपसे प्रामार मानता रि द्गहाने ममप-ममय पर
पूम्नरके प्रू मनोपन प्रौर सग्पाट्यजार्यमें योग दिया ।
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