खानखाना नामा | KhanKhana Nama

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KhanKhana Nama by मुंशी देवीप्रसाद - Munshi Deviprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला भाग । १ ६ न) पी मीर न ~ ० ~ ० >>. ग क 0 क ०५ जे এসি পা खबर आयो भ्रर कुछ दिनों पोछ वंगालका बादशाह नसोर (१) भो शेरखांसे हारकर आमरेमें आया। शेरखां भर्थात्‌ शरशाहका जोवनचरित्र हम छपा चुके हैं। यहां अक्बरनामेसे कुछ हाल उसका लिखते है शरसखांका असलो नास फरोीद, बापका इसन और दादाका शूव्राहोम था इव्राहोम जिले मेवात परगने नारनोस गांव शिसले- में रहता था और घोड़ोंको सौदागर करता था। इसन रीद्‌ा- गरो छोड़कर सिप।ही बना ओर वदत सुहत तक रायसास शेखा- बतक। नोकर रह।| जो आर रके राज्यका एक बड़ा जागोरदार था। फिर सहसराम जिले विहारमें जाकर सुलतान सिकंदर लोदोके असोर नसतो रखा लोहानोका नोकर हुआ । उस् वक्ष फरोद अपने बापसे रूठकर बावर बादशाइके अमोर सुशतान जनेदको नौकरो करने लगा। एक दिन बाबरने उसको देखकर एुनेदसे कहा कि इस पठानको आंख नें बदमाशों पायो जातो है। इसको कैद रखना चाहिये। फरोद यह सुनकर भ.ग गया ओर बापके मरने पर उसके स.लक। मालिक होकर सहसराम ओर रुूह्ृतासके बो चमें लुट मार करने लगा | सुलतान बहादुर गुजर।ती ने खच भेजकर उसे बुलाया। छसनं खच तो ले लियाओर कुछ बहाना करके उसके पास नदीं गया | इतनेहोमें बिहारक! हाकिस सर गया और भेरम्हां म दान खालो देखकर वहांका मालिक बन बैठा | फिर एक वष तक वंगालके बादशाह नसोबश।हसे बराबर लड़ता रहा। उन दिनों इमायू बादशाह मालवा(र२) ओर गुजरात फतह करनेमें लगे हुए शे जिससे उसको ख ब सोका मिल गया था । ---~~---------~----~~~ -----~--------- ~ ৯০৮ न+ পিপি | পাপিশপীপশীশাশি পিল न= ~~ (१) बंगाल .रून 3३८ संवत १३९८५ खुट्खमुतार हौ ग्या धा श्रौर नसोवशाह सन ८२७ संवत १५७७ में बाटशाह त्रा था। बंगालकों बादशाह्षो सन ८८३ संवत १६३२ तक दिल्लीसे अलग रहो। फिर अकचर बादशाहने फतद् कर लो । (२) मालवेमें भो अलग बादशाहत सन ८०४ संवत १४५४८ से सन ८७० संवत १६१८ तक थो | फिर अकबर बादगाहने दिल्लोमें मिला लो । मालवेके बादशाह गोरो और खिलजे जातिके थे ।




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