मध्यप्रांत, मध्यभारत और राजपूताना के प्राचीन जैन स्मारक | Madhyaprant, Madhyabharat aur Rajputana Ke Prachin Jain Smarak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
247
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२०)
क्षैन अंथोंमें इस समयके 'कल्कि' नामक रानके निन्य सुनिर्योषर
भोरी अल्ाचारोंका उछेख दे | उत्तरपुराणमें कहा गया है कि उसने
वरिभ्रदरहित सुनियोंपर भी कर छूगाया था । कुछ विद्धान् इस
ऋंशिकिराजकी हणवेशी, महा दुराचारी मिहिरकुल ही अनुमान
करते हैं | कल्किका अधरमराज्य बहुत समयतक नही चला-४२
वके अधर्म राज्ये भूतरको करेकितकर् कल्कि कुगतिको प्राप्त
, हुआ और ऽक्के उत्तराधिकारियोने पुनः घरमैरा्य स्थापित किया ।
वीं. द्दावीं शताव्दिसे मध्यभारतमे जेनधरमकी विशेष उन्नति
इई ओर कीतिं फटी । “धारके नरेशोने जन ध्ैको सव अप-
নানা, « নহাধিনমূহি ` ने मुञ्चनेरेशसे विशेष प्तन्मान प्रात किया
जग उनके उत्तराधिकारी सिन्धुरानकरे एक महाप्तामन्तके भनुरोधसे
उन्दने प्रयुन्नचरितः काव्यकी रचना की | ग्वालियर रियाप्ततके
चिवपुर् परगनान्तमेत दूबकंडसे मो सं० ११४५का शिलालेख
मिला है उत्तमें तत्कालिक रामवेश परिचयके अतिरिक्त 'लादवागठ!
गणके आचायोकी परम्परा दी है। टस परम्पराके, आदिमुरु देब-
मेन कहेगये हें. (४० ७३-७७)। ये देवसेन संभवतः वे ही हैं
मिन््होंने संवत् ९९ ०में दरश्शनसार नामक एक मनन ऐतिहासिक
गथकी रचना की थी। इनके बनाये हुए संस्कृत, आरृत और भी
अनेक ग्रन्थ पाये जाते हैं । नोनदेवके समयमें अनेक प्र्तिछ॒२
जेमाचाये हुए है । बह्मदेव टीङाक्ारफे अनुपार द्व्यह अथके
रचविता नेमिचन्द्राचाय मोजदेवके दरबार थे। नयनंदि माचा-
येने अपना अपभ्रश् सापाका एल काव्य सुदर्भनचरित्र' भी इन्हींके
राज्यमें सं० ११० ०में समाप्त दिया था नेसा उसकी परशस्तिम हैः-
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