बच्चों की कला और शिक्षा | Baccho Ki Kala Or Shiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मोनोक्रोम चित्र
पहले' कीरम-काँटे लडका, उम्र २-७
जव प्रारम्भ मे वालक हाय सें पेंसिल पकडकर गोल-गोल आकार वनाने
लगता है। यह विशेष तौर पर स्तायु-करिया ( मस्क्युकर मूवमेण्ट )
होती है।
सावन से परिचयः लडकी, उम्र ३-६
वालक देखता है कि जो सावन हाथ में है, उससे क्या-क्या हो सकता है।
शस्नायुमो पर कव्जा आना प्रारम्भ” ( मस्व्युदूर कट्रोल ) छूडका, उम्र ३
अव हाथ केवल गोरू-गोल न चहुकर कोणाकार और उल्टा-सीघा भी
चलने लूगता है।
'स्मायुजो पर अधिक कब्जा लडका, उम्र ३
पूरा कन्वा ओर कोहनी चलना कम हो जाता है और करूई पर कब्जा
आने लगता है 1 अलग-अलग रगो से हाथ इघर-उवर चरने में वालक
और मज़ा लेने छुगता है।
गोरू-गोल आकारो से खेल लडकी, उम्र ४-६
इस आकारो के खे के वाद इस वालिका ने इस चित्र का नाम दिया घर 1
ঘীন্তা? लडका, उम्र ४
कूची भौर रग से जो कीरम-काँटे' वने, इस चालक ने उसे 'घोड़े' का
नाम दिया। सचमुच ही चित्र मे घोडे का आमास आता है।
“राम का घनु्ष लरूडका, उम्र ४
( वर्णन पृष्ठ-सछ्या ६२ पर देखिये )
मनुष्याँ लडका, उम्र ४
पके चाककं ऊपर से नीचे लकीर खीच रहा था ! इसके हाय से एकं
पडी सकर पहरी खडी छकीर को काटते हुए खिच गयी । उसके वाद
उसने सव खडी कीरो को आदमी वनाने के लिए पडी लकीरो से काट
दिया 1 सवे मनुष्य वन गये ।
- तारो भरी रात लडकी, उम्र ५-३
चित्र बनाने के पहले ही इस वालिका के मन में चित्र की योजना थी।
इस अवस्था में स्पष्ट प्रतीक-काल प्रारम्भ हो जाता है।
उन्नीस
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