केशव-कौमुदी (प्रथम भाग ) | Keshav-Kaumudi (Pratham Bhaag)

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Keshav-Kaumudi (Pratham Bhaag) by लाला भगवानदीन - Lala Bhagawandin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चहिला प्रकाश बड़े ऋषि और बडे-वड़े तपस्वी लोग कह-कह कर थक गए, पर किसो ने पूरी न कह पाई | मूतकाल के संसारी लोग कह गए, वर्तमान काल के कह रहे हैं प्रौर मविष्य काल के कहँगे तो मी ( केझौदास कहते है ) पूरी प्रशंसा न हुई গীব न हो सकेगी (लौकिक वर भ्रस्य लोगों की तो बात ही क्या, स्वयं उनके सम्बन्धी जो उनकी उदारता भली माति जान सक्ते ह) परति ( ब्रह्मा ) चार मुख से, पुत्र (महादेव) पाँच मुख से श्रौर नाती (पढानन) छः मुख से वर्णन करते है तो भी कुछ न कुछ नवीन उदारता उनको कहने के लिए मिलती ही जाती है--प्र्थात्‌ वे भी पूर्णतया नहीं कह सकते, तव हम मनुष्यों की वया सठि है कि उनकी उदारता का कुछ भी वर्णन कर सके । अलंकार--सम्बन्धातिशयोक्ति । श्रीराम-बंदना दंडक--ध्रृरण पुराण श्र पुदप पुराण परिप्ुरण, अतावे ন্‌ আবে और उक्ति को । दरशन देत जिन्हें दरझ्नन समुझे न, नेति-नति कहे वेद छांड़ि भ्रान युवत को 1 जानि यह्‌ केशोदास अनुदिन रास राम, বরন रहत न डरत पुनदकति को। रूप देहि श्रणिमाहि गण देहि भरिमाहि, भवित देहि महिमाहि नाम देहि मुक्ति को ॥३॥ इाष्दार्य--ूरण सम्पूणं, स्व । परिपूरण=सव भकार पूर्णं 1 उक्ति वात, कयन । दरयन=यद् स्तर । श्रनुदिनन्=रोज-रोज, नित्य । पुनषक्ति= दोबारा कहने का दोष। श्रणिमा>-वह सिद्धि जिससे छोटे से छोटा रूप घारण किया जा सकता है। महिमा--वह सिद्धि जिससे वडा रूप धर सकते हैं । मुक्ति--जीवन-मरण से छुटकारा । भावायं--सद पुराण (ग्रन्थ ) ओर पुराने लोग जिसे श्रोर कथत छोड़ सब प्रकार पूर्ण बतलाते हैँ (प्रोर) जिसको पट्य्मास्त्र ( के समझाने वाले नानी) समन्त मही सक्ते वे ही राम (पने प्रेमी भक्तो को) प्रत्यक दर्शन देते हूँ । भर्यात्‌ घास्‍्त्रद्माती जिसके निर्युण रूप को समझ नहीं सकते वही




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