राजस्थानी लोक कथाएँ प्रथम खण्ड | Rajasthani Lok Kathayen Khand

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Rajasthani Lok Kathayen Khand  by गोविन्द अग्रवाल - Govind Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) “जय-जगत' या जिओ और जीने दो' का नारा सब को एक अनोखी सूझ लगता है लेकिन शाजस्थानी ब्रत-कथाओं की यह एक परंपरागत अनूठी देन है । इनके अतिरिक्त कथाओं की एक चौथी किस्म वह कही जा सकंती है जो नव-युवक यार दोस्त अपने साथियों में वेठ कर कहते हैं। इन कथाओं मे अश्टीलता का पुट होता है, अत: ऐसा साहित्य लिपि-बद्ध नहीं किया जा सकता ! यदि इन कथाओं से अदलील अंश और दब्द निकाल दिये जाएँ 'तो ये कथाएँ भी बड़ी उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं । मैंने इन कथाओं में कुछ अइलील कथाओं को इलीछ बनाकर पेश करने का प्रयत्न किया भी है । इतिहास तो राजाओं के जन्म-मरण की तारीखों आदि का सूचीपत्र मौत्र हीता है। तत्कालीन जन-जीवन पर तो इन कथाओं से ही प्रकाश पड़ता है। ये लोक-कथाएँ ही राजस्थान के तत्कालीन जन-जीवन की सच्ची तस्वीर खींचती हैं और इन कथाओं का राजस्थान के जन-जीवन पर भर- पूर असर रहा है । जहाँ तक हो सका है, मैंने कथाएँ संक्षिप्त रूप में ही लिखने की चेष्टा की हैं लेकिन साथ ही मेरा यह प्रयत्न भी रहा है (कि कथा का कोई आव- इयक अंग छूटने न पाये । कुछ ऐसे भी प्रसंग होते हैं जो थोड़े बहुत हेर फेर 'के साथ कई कथाओं में आते हैं।जो प्रसंग एक कथा में विस्तार से आ चका हैं, वसा ही प्रसंग दूसरी कथा में आने पर मैंने उसे बहुत॑ संज्ञिप्त कर दिया है । मैंने अपना कत्तंव्य ईमानदारी पर्वक और निष्पक्ष भाव से निभाने की चेष्टा की है। इसमें कहाँ तक सफल हो सका हूँ, यह तो विद्वान और सहृदय पाठक ही बतला सकेंगे । जहाँ तक भाषा का सवाल है, मैने सररतम ओर बोलचाल की माषा मे कथाएं लिखने का प्रयत्न किया है, जिससे अधिका- धिक पाठक इन कथाओं को पट्‌ सके तथा जिन राज्यों में हिन्दी का अभी बहुत प्रचलन नहीं हुआ हैं और जहाँ सरल हिन्दी ही समझी और पढ़ी जाती है, वहाँ के निवासी भी इन कृथाओं में रुचि ले सकें । कथाओं के




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