कुसमकुमारी | Kusum Kumari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.3 MB
कुल पष्ठ :
225
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यरिच्छेद 3 कुखुमकुमारी रे
सौर दो साजिन्दुदद थे | हरिद्रसित्र में पईंचने के समय एक किश्ती
से उक्कर खाकर मेरी डॉगी उदर गई, फिर कौन किघर राया,
इसका कुछ पता महीं ! थोड़ी देर में मेरे इंसर के बाल किसीने
पकड़े, उस समय मैं उससे उपट गई; यहां तक कि उसी लघपदा-
कपडी में मेरे पैर के छड़े, कमर की करधनी, गछे की सोने की
सखिकरी और बदन की साड़ी तक न जाने कहां की कहां गई ! फिर
मैं बेदोश होगई और दोश में आने पर मैने डाक्रसाहव से सुना कि
थे ही महात्मा ( उस मद की ओर उंगली उठाकर ) मेरे साथ
बेहोश या मुर्दे की दाछत में पाए यए, जिन्हें मैं अपनी जान बचाते-
चाला खमर्ती हूँ। ”
मजिष्टट,- उन सबका नाम टुम बटछा सकी हो ? ”
कुखुम,-' जी हां ! मेरी मां का नाम चुनी था--
मजिष्ट ट,-(एंउसे रोककर ) “' क्या डुम इटाढ़ी की जिमीदारिन
और मशहूर रंडी चुन्नी की लड़की है ! ”
कुसुम,-' जी हां, इजर ! ”
मजिष्ट हमको यह सुनकर , कि' खुन्नी डूब गई,'निहायर
अफसोस हुआ ! हम जब आरा का मजिष्दु ट था, तब हमारा
इजलास में उसके इलाके का सुकड्डमा बराबर होटा ठा। हम उस
को खूब जानटा है, वह बड़ी नेक रंडी ठी । अच्छा और कौन
कौन डूबा ? ”
कुखुम,-' एक मज़दूरनी, जिसका नाम भारो था और दो
नौकरों में खें एक का नाम उदित और दूसरे का नास गनपत था ।
चह मज़दूरनी और वे दोनों नौकर कहांर थे ! दोनों साजिन्दाओं में
से एक का नाम भरोस और दुखरे का मिट्ठ था 1”
मजिप्द जमादार की ओर घूमकर' ) डुम बड़ा
अक आडमी है ! गज़ब खड़ा का ! छा छः रयट डूबकर ला पटा
दहोगया और कुछ कोशिश नहीं किया ! डुम नौकरी से जबी
बटरफ़ किया गया । बस, चला जाघ |”
यह खुनते ही बेचारे जमादार की मानों नानी सर गई ! अगर
चहद कादा जाता तो उसके बदन में से खन न निकलता ! फर हद
बेंचारा क्या करता ? लाचार, वद्द हटकर जरा दूर साहब के पीछे
जा खड़ा हुआ
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