कुसमकुमारी | Kusum Kumari

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Kusum Kumari by पं. किशोरीलाल गोस्वामी - Pt. Kishorilal Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यरिच्छेद 3 कुखुमकुमारी रे सौर दो साजिन्दुदद थे | हरिद्रसित्र में पईंचने के समय एक किश्ती से उक्कर खाकर मेरी डॉगी उदर गई, फिर कौन किघर राया, इसका कुछ पता महीं ! थोड़ी देर में मेरे इंसर के बाल किसीने पकड़े, उस समय मैं उससे उपट गई; यहां तक कि उसी लघपदा- कपडी में मेरे पैर के छड़े, कमर की करधनी, गछे की सोने की सखिकरी और बदन की साड़ी तक न जाने कहां की कहां गई ! फिर मैं बेदोश होगई और दोश में आने पर मैने डाक्रसाहव से सुना कि थे ही महात्मा ( उस मद की ओर उंगली उठाकर ) मेरे साथ बेहोश या मुर्दे की दाछत में पाए यए, जिन्हें मैं अपनी जान बचाते- चाला खमर्ती हूँ। ” मजिष्टट,- उन सबका नाम टुम बटछा सकी हो ? ” कुखुम,-' जी हां ! मेरी मां का नाम चुनी था-- मजिष्ट ट,-(एंउसे रोककर ) “' क्या डुम इटाढ़ी की जिमीदारिन और मशहूर रंडी चुन्नी की लड़की है ! ” कुसुम,-' जी हां, इजर ! ” मजिष्ट हमको यह सुनकर , कि' खुन्नी डूब गई,'निहायर अफसोस हुआ ! हम जब आरा का मजिष्दु ट था, तब हमारा इजलास में उसके इलाके का सुकड्डमा बराबर होटा ठा। हम उस को खूब जानटा है, वह बड़ी नेक रंडी ठी । अच्छा और कौन कौन डूबा ? ” कुखुम,-' एक मज़दूरनी, जिसका नाम भारो था और दो नौकरों में खें एक का नाम उदित और दूसरे का नास गनपत था । चह मज़दूरनी और वे दोनों नौकर कहांर थे ! दोनों साजिन्दाओं में से एक का नाम भरोस और दुखरे का मिट्ठ था 1” मजिप्द जमादार की ओर घूमकर' ) डुम बड़ा अक आडमी है ! गज़ब खड़ा का ! छा छः रयट डूबकर ला पटा दहोगया और कुछ कोशिश नहीं किया ! डुम नौकरी से जबी बटरफ़ किया गया । बस, चला जाघ |” यह खुनते ही बेचारे जमादार की मानों नानी सर गई ! अगर चहद कादा जाता तो उसके बदन में से खन न निकलता ! फर हद बेंचारा क्या करता ? लाचार, वद्द हटकर जरा दूर साहब के पीछे जा खड़ा हुआ




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