अमृत की बूँदें | Amrit Ki Buden

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Amrit Ki Buden by आनंद कुमार - Anand Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धम, सदाचार १५ २८ | देवता भाव का भूखा है, न कि पूजा की सामग्री का। --बालगंगाधर तिलक ५. दूढता फिरता हूं ই इकबाल” अपने-आपको । आप ही गोया मुसाफ़िर, आप ही मंजिल हूं मैं ॥| ३० अपने मन में वकर पाजा सुरागे जिन्दमौ ¢ तू अगर मेरा नहीं बतता न बन अपना तो बन॥ --इक़बाल | ३१ समुद्र में रहनेवाला बिंदु समुद्र की महत्ता का उपभोग करता है, परंतु उसका उसे ज्ञान नहीं होता । समुद्र से अलग होकर ज्योंही अपनेपन का दावा करने चला कि वह उसी क्षण सूखा। इस जीवन को पानी के बुलबुले की उपमा दी गई हैं । इसमें मुझे जरा भी अतिशयोक्ति नहीं दिखाई देती । -मो. क. गांधी : ४: धमे, सदाचार ९ £ संभेपात्कथ्यते धर्मो जनाः कि विस्तरेण वा । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्‌ ॥ --व्यास “है मनुष्यो ! अधिक कटने से क्या लाभ ! हम संक्षेप मे तुम्हें धर्म का तत्व बता देते हू । परोपकार करना पुण्यकमं हँ ओर दूसरों को पीडा देना पाप है । न श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधायंताम्‌ । आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्‌ ॥ “-व्यास




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