धर्मशर्माभ्युदय | Dharmasharmabhyuday
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९४ घमंशर्माम्युदय
अन्थोमे क तरहसे काव्यस्वरूपका वन किय ।है। एक दूसरेने दूसरेकी
मान्यताओ्रोंका खएडन कर अपनी-अपनी मान्यताओ्को पुष्ठ किया है। यदि
विचारक दृष्टिसे देखा जाय तो किसीकी मान्यताए' श्रसंगत नहीं हैं क्योकि
सवका उद श्य चमत्कार पैदा करनेवाले शब्दार्थमे ही केन्द्रित है। सिर्फ़
उस चमत्कारको कोई स्ससे, कोई श्रलंकारसे, कोई ध्वनिसे, कोई व्यश्ञनासे
और फार विचित्र उक्तियाँसे अभिव्यज्जित करना चाहते हैं ।
काव्यफे कारण---
'स्वंतों सुखी प्रतिभा” “बहुज्ञता व्युत्पति” सब श्रोर सब्र शास्त्रॉमें
प्रवृत्त होनेवाली स्वाभाविक बुद्धि प्रतिभा और श्रनेक शास्त्रोंके अ्ध्ययनसे
उप्पन्न हुई बुद्धि व्युत्पत्ति कहलाती है। काव्यकी उत्पपत्तिमे यही दो मुख्य
कारण हैं। “प्रतिभा-व्युत्पत्यो: प्रतिभा श्रेयसी! इत्यानन्दः--आनन्द
फाचार्य का मत है कि प्रतिभा और व्युक्त्तिमें प्रतिमा ही श्रेष्ठ है क्योंकि
নই कविके छज्ञानसे उत्पन्न हुए दोषकों हटा देती है और “्युत्पत्ति-
श्रेयली! इति मज्ञल ,--मद्गलका मत है कि व्युत्यत्त ही श्रेष्ठ है क्योकि
बह कावके अर्शाक्त कृत दोषको छिपा देती है। '्रतिमा-व्युप्पत्ती मिथ
समतरेत धेयस्यौ' इति यायावरीय.--यायावरीयका मत है कि प्रतिभा और
व्युत्पत्ति दनो मिलकर সম্প ই क्योकि काव्यमे सौन्दर्य इन दोनो कारणोसे
ही श्रा सक्त, है । इस विषयमे राजरोखरने श्रपनी काव्य-मीमासामे भ्या
ही भ्रच्छा लिखा हैन ख लावण्यललामाहते रूपसम्पत्, ऋते रूप-
सम्पदी वा ज्ञावण्यलब्धिमंहते सौन्दर्याय'--लाव एयके प्राप्त हुए, बिना
रूस सम्पसि नहीं हो सकती ओर न रूप-सम्पत्तिके बिना लावए्यकी प्राप्ति
सौन्दर्यके लिए हो सकती है।
कवि-
'परतिभा्युषत्तिमंश्च कविः कविरिपयुर्यते - प्रतिभा श्रौर ग्युत्पत्ति
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