जीवन कण | Jiivan Kan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बह प्रतीक्षा ११
गृह भरी बुहारी कियो युधये
ভীত की सुचि सेज सजाई |
मग जोहि रही खरी द्वार, छनं छन
आवतते हरि देत दिखाईं।
तब तो चह एकवारगी चित्रलिखित-सी रह गई। खुख को
उस श्यामल रूप में घनीभूत सहसा आते देखकर वह घबरा-
सी गई--
निछावरि ती जिनकी सुनि नाम ओ
बरावर ती जिनको घरि ध्यान ।
गयो जिन्हे हेरत हीय हिराय
सु आपह आय मिले महिमान |
बिलोकत पात सो गात केप्यो
ग्रभु-पाय परी बिसरयों निज मान |
कहाँ जल, भारी, अँगोछे तहाँ
पग असु धौये ओ पोंछे जटान |
ओर उसके वे-
स्वरी की बिलोफि बिदेह दसा
कर्नानिधि को भरि आयो ह्यो ।
पुलक्यो तन अंग असक्त भये,
गर॒नेह्उमंगन रोधि लियो।
मुल मूक मो, सस असीस दई
ओरौ जटानहि सीस पै हाथ दियो।
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