जीवन कण | Jiivan Kan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बह प्रतीक्षा ११ गृह भरी बुहारी कियो युधये ভীত की सुचि सेज सजाई | मग जोहि रही खरी द्वार, छनं छन आवतते हरि देत दिखाईं। तब तो चह एकवारगी चित्रलिखित-सी रह गई। खुख को उस श्यामल रूप में घनीभूत सहसा आते देखकर वह घबरा- सी गई-- निछावरि ती जिनकी सुनि नाम ओ बरावर ती जिनको घरि ध्यान । गयो जिन्हे हेरत हीय हिराय सु आपह आय मिले महिमान | बिलोकत पात सो गात केप्यो ग्रभु-पाय परी बिसरयों निज मान | कहाँ जल, भारी, अँगोछे तहाँ पग असु धौये ओ पोंछे जटान | ओर उसके वे- स्वरी की बिलोफि बिदेह दसा कर्नानिधि को भरि आयो ह्यो । पुलक्यो तन अंग असक्त भये, गर॒नेह्उमंगन रोधि लियो। मुल मूक मो, सस असीस दई ओरौ जटानहि सीस पै हाथ दियो।




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