हमारे बापू | Hamare Bapu

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Hamare Bapu by श्री हरिश्चन्द्र - Shri Harishchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रार+भिक जीवन [७ णोपरान्त विपयासक्त सा होगया | अत्र तो स्कूल में सी श्रीमती फ़ दी स्रप्त आने लगे | कस्त्रवाई वहुत थोडी पढ़ी लिखी थी । मोहनदास फी इच्छा हुई कुछ पढ़ा कर पत्नी के प्रति कर्तव्य पालन छरे, पर स्त्री के सामने जाते ही गष शप्प को जी चाहता | आखिर 'मन की मनदी मांध्दी रही? वाली कट्दाबत चरिताथ हुई। कस्तूर बाई के भाल मे शिक्षा और मोहनदास के भाग्य में पढ़ी लिखी धरम पत्नी ही न लिखी थी। विवाह के समय आप हाई स्कूल मे द्वी पढते थे। बडे भाई जिनका इनके विवाह के साथ ही विवाह हुआ था, इनसे ऊपर की कत्ता भे पढ़ते थे । विचाह के कुपरिणास হন दोनों भाइयों का एक साल मारा गया | बड़े भाई तो उसके उपरान्त विद्यालय मे रह ही न पाये। मोहनदास ने महात्मा होकर इस बाल-विवाह के दु खद परिणाम पर श्रॉसू बह्दाते हुए श्रात्म-जीविनी में बाल- विदाह प्रकरण मे लिखा है, जी चाहता £ छि यह प्रहरण झुझे न लिखना पड़े तो भच्छा, परन्तु इस कथा मे ऐसी फ्रितनी ही फडची দু पीनी पढ़े'गी। सत्य के पुजारी ने फा दावा करके में इस से कैसे वच सकता हूँ ९” ৪১ न ते হই ॥ 4.१ এঅহু लिखते हुए मेरे टय फो बडी व्यया होत्तीदहै फ़ घय फी ্কানংখা ঈ मरा विद्यह हुआ | आज में जब १० १ के वच्च को देखता हैँ ओर अपने दिवाह का स्मरण हो है; तब मुझ अपने पर तरस आने लगता है; अर इन घन्चा को इस वात के लिए बधाई देने की इन्छ्ा होती है कि ये मरी ॐ পু 2 স্নক न




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