महाभारत कथा 1 | Mahaabhaarat Kathaa 1

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चक्रवर्ती राजगोपालाचर्या - Chkravarti Rajgopalacharya

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श्री पूर्ण सोमसुन्दरम - Shri Purn Somsundaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ महाभारत-कथा पाए। अगर आप ज्ञरा भो रुक गए तो फिर मेरी लेखनी भी एकदम रक जायगी । क्या आपसे यह हो सकेगा 7 रातं जरा कठिन थी । लेकिन व्यासजी ने मान ली । वह बोले-- “आपकी शतं मुक्षे मंज्रह, पर मेरी भी एक श्तं ह्‌ । वहु यह कि आप भी तभी लिखियेगा जब हर इलोक का अर्थ ठीक-ठीक समझ लें ।” सुनकर गणेशजी हंस पड़े । बोले--“यह भी कोई बड़ी बात है ?” और व्यास और गणेश आमने-सामने बठ गये । व्यासजी बोलते जाते थे ओर गणेशजी लिखते जाते थे। कहीं-कहीं व्यासजी इलोकों को इतना जटिल बना देते थे कि गणेशजी को समझने में कुछ देर रूग जाती थी और उनकी लेखनी जरा देर रुक जाती थी । इस बीच व्यासजी कितने ही ओर शलोको कौ मन-ही-मन रचना कर लेते थे । इस तरह महा- भारत कौ कथा व्यासजी की ओजभरी बाणी से प्रवाहित हुई ओर गणेशजी को अथक लेखनी ने उसे लिपिबद्ध किया । ग्रंथ लिखकर तयार हो गया । अब व्याजी के मन मं उसे सुरक्षित रखने तथा उसके प्रचार का प्रश्न उठा । उन दिनों छापेखाने का आविष्कार नहीं हुआ था। शिक्षित लोग प्रथो को कण्ठस्य कर लिया करते थे ओर इस प्रकार स्मरण-शक्ति के सहारे उनको सुरक्षित रखते थे। व्यासजी ने भी भारत की कथा अपने पुत्र शुकदेव को कण्ठस्य कराई ओर बाद में अपनें और कई शिष्यों को भी कराई । ® कहा जाता ह कि देवों को नारदमुनि ने महाभारत-कथा सुनाई थी ओर गन्धर्वो, राक्षसो तथा यक्षो मं इसका प्रचार शुक मुनि ने किया । यह तो सभी जानते हं कि मानव-जाति मं महाभारत-कथा का प्रचार महर्षि वंशंपायन से हुआ । वंशंपायन भगवान्‌ व्यास के प्रमुख शिष्य थं ओर बड़ विद्वान्‌ तथा धमंनिष्ठ थे । महाराजा परीक्षित फे पुत्र जनमेजय ने एक महान्‌ यज्ञ॒ किया । उसमें उन्होने महाभारत-कथा सुनाने कौ वंहंपायन ते प्राना की।




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