महाभारत कथा 1 | Mahaabhaarat Kathaa 1
लेखक :
चक्रवर्ती राजगोपालाचर्या - Chkravarti Rajgopalacharya,
श्री पूर्ण सोमसुन्दरम - Shri Purn Somsundaram
श्री पूर्ण सोमसुन्दरम - Shri Purn Somsundaram
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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चक्रवर्ती राजगोपालाचर्या - Chkravarti Rajgopalacharya
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श्री पूर्ण सोमसुन्दरम - Shri Purn Somsundaram
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ महाभारत-कथा
पाए। अगर आप ज्ञरा भो रुक गए तो फिर मेरी लेखनी भी एकदम
रक जायगी । क्या आपसे यह हो सकेगा 7
रातं जरा कठिन थी । लेकिन व्यासजी ने मान ली । वह बोले--
“आपकी शतं मुक्षे मंज्रह, पर मेरी भी एक श्तं ह् । वहु यह कि
आप भी तभी लिखियेगा जब हर इलोक का अर्थ ठीक-ठीक समझ लें ।”
सुनकर गणेशजी हंस पड़े । बोले--“यह भी कोई बड़ी बात है ?”
और व्यास और गणेश आमने-सामने बठ गये । व्यासजी बोलते जाते थे
ओर गणेशजी लिखते जाते थे। कहीं-कहीं व्यासजी इलोकों को इतना
जटिल बना देते थे कि गणेशजी को समझने में कुछ देर रूग जाती थी
और उनकी लेखनी जरा देर रुक जाती थी । इस बीच व्यासजी
कितने ही ओर शलोको कौ मन-ही-मन रचना कर लेते थे । इस तरह महा-
भारत कौ कथा व्यासजी की ओजभरी बाणी से प्रवाहित हुई ओर गणेशजी
को अथक लेखनी ने उसे लिपिबद्ध किया ।
ग्रंथ लिखकर तयार हो गया । अब व्याजी के मन मं उसे
सुरक्षित रखने तथा उसके प्रचार का प्रश्न उठा । उन दिनों छापेखाने
का आविष्कार नहीं हुआ था। शिक्षित लोग प्रथो को कण्ठस्य कर लिया
करते थे ओर इस प्रकार स्मरण-शक्ति के सहारे उनको सुरक्षित रखते
थे। व्यासजी ने भी भारत की कथा अपने पुत्र शुकदेव को कण्ठस्य
कराई ओर बाद में अपनें और कई शिष्यों को भी कराई ।
®
कहा जाता ह कि देवों को नारदमुनि ने महाभारत-कथा सुनाई थी
ओर गन्धर्वो, राक्षसो तथा यक्षो मं इसका प्रचार शुक मुनि ने किया ।
यह तो सभी जानते हं कि मानव-जाति मं महाभारत-कथा का प्रचार
महर्षि वंशंपायन से हुआ । वंशंपायन भगवान् व्यास के प्रमुख शिष्य थं
ओर बड़ विद्वान् तथा धमंनिष्ठ थे ।
महाराजा परीक्षित फे पुत्र जनमेजय ने एक महान् यज्ञ॒ किया ।
उसमें उन्होने महाभारत-कथा सुनाने कौ वंहंपायन ते प्राना की।
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