महादेवी वर्मा | Mahaadevii varmaa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भगवानजी पर चढ़ने के बादफिर जिज्जी (माँ) उन्हें नदी भेजवा देती हैं। माली
कड़े में फेंक देता है और बाबू उन्हें उठाने भी नहीं देते ।' पंडितजी इस उत्तर से
इतने प्रसन्न हए कि उन्होने तुरंत छुट्टी दे दी। धीरे-धीरे पंडितजी को ज्ञात
हुआ कि बालिका केवल बातचीत में ही नहीं, पढ़ने-लिखने में भी पर्याप्त प्रवीण
है। लड़कियाँ और हो ही क्या सकती हैं, पढ़ाक या लड़ाकू। महादेवीजी ने
दोनों छपों में दक्षता प्राप्त को है। लड़ाकू रूप उनके सामाजिक विद्रोह और नारी
विषयक निबन्धों में शतश: मुखरित है और उनका पढ़ाक रूप तो जग-जाहिर है ।
रामा नामक संस्मरण-रेखाचित्र में इन्होंने अपने बचपत की अनेक मनो
रंजक घटनाओं का उल्लेख किया है, जिनसे इनके स्वभाव और प्रबुद्धता का पता
चलता है। दशहरे के मेले में जाने के लिए रामा ने एक को कंधे पर बिठाया और
दूसरे को गोद में ले लिया । इन्हें उँगली पकड़ाते हुए बार-बार कहा--उँगरिया
जिन छोडियो राजा भदया !' सिर हिलाकर स्वीकृति देते हुए भी इन्होंने अंगुली
छोड़कर मेला देखने का निश्चय कर लिया। भटकते-भूलते और दबने से बचते-
बचते जब इन्हें भूख लगी तब হালা का स्मरण अनिवार्य हो उठा। एक मिठाई की
दूकान पर खड़े होकर अपनी सारी उद्विग्नता छिपाते हुए इन्होंने सहज भाव से
प्रन किथा--क्या तुमने रामा को देखा है ? वह खो गया है ।' बूढ़े हलवाई ने
वात्सल्य-मुग्ध होकर पूछा-- कैसा है तुम्हारा रामा ?' इन्होंने ओंठ दबाकर धीरज
के साथ कहा--बहुत अच्छा है । हलवाई इस उत्तर से क्या समभता ? अन्ततः
उसने आग्रह के साथ विश्राम करने के लिए वहीं बिठा लिया। महादेवीजी ने
लिखा है--मैं हार तो मानना नहीं चाहती थी, परन्तु पाँव थक चुके थे और मिठा-
इयों से सजे थालों में कुछ कम निमन्त्रण नहीं था। इसीसे दृकान के कोने में बिछे
टाट पर सम्मान्य अतिथि की मुद्रा में बेठकर मैं बूढ़े से मिठाई रूपी अध्ये को स्वीकार
करते हुए उसे अपनी महान यात्रा की कथा सुनाने लगी ।' सन्ध्या समय जब सबसे
पूछते-पूछते बड़ी कठिनाई से रामा उस दूकान के सामने पहुँचा, तब इन्होंने विजय-
गवे से फूलकर कहा--तुम इतने बड़े होकर भी खो जाते हो रामा !
एक बार पड़ोस में किसी कुत्ती ने बच्चे दिये। जाड़े की रात का सनाका
और उण्डी हवा के कोकीं के साथ पिल्ल की कृ-क की ध्वनि करुणा का पा संचार
करने लगी जो इनके कोमल हृदय के लिए असह्य हो उठी । पिल्ल को घर उठा
लाने के लिए ये इतना जोर-जोर से रोने लगीं कि सारा घर जग गया। अन्त में
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