जय गोमतेश्वर | Jay Gomteshwar

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Jay Gomteshwar by अक्षयकुमार जैन -Akshay Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हुआ है । कहा जाता है, किसी समय यह सरोवर निश्चय हो उस क्षेत्र का अत्यन्त आकर्षक स्थान था। इस नगर की जनसंख्या ४-५ हजार है । इसके उत्तर में चन्द्रगरि और दक्षिण में विन्ध्यागिरि अथवा इन्द्रगिरि नाम की दो पहाडियां हैं। इन दोनों के मध्य यह भाग्य- शाली गांव बसा हुआ है । विन्ध्यगिरि समुद्र तल से ३३४७ फुट और आसपास के मदान से ४७० फट ऊचा है। ट्स पर भगवान गोम्मटेश्वर-बाहुबली की विशालकाय कलात्मक ५७ फूट ऊंची विश्व विख्यात अखण्ड शिला की खडगासन प्रतिमा विराजमान है । प्राचीनता जनश्रति तो यह है कि दक्षिण भारत मे वनव्राग के काल में मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र यहां पधारे थ और उन्होंन बाहुबलि की एक বলল प्रतिमा यहा स्थापित की थी किन्तु आज रामायण काल की प्रतिप्टित उस प्रतिमा का कही पतला नहीं है। यह পায্ণলিলামিন্ধ জল श्रति है । किन्तु इतिहास बताता है कि जनों के २४वें तीर्थकर भगवान महावीर क परिनिर्वाण कः लगभग इढ सौ वर्ष बाद मगध्र देश में अस्तिम श्रतकेवली स्वामी भद्रबाहु मुनीन्द्र विराजमान थ । कहा जाता है कि अंतिम श्रतकेवली भद्रवादु वगान के रहले बाल श्र किल्तु सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के आचाये होने के कारण पाटलीपुत्र मे आकर रह रहे थ । उस समय इतिहास प्रसिद्ध मौय सम्राट चन्द्रगुप्त उज्जयिनी में राज्य करते थे (2১ पृ० २६६ से ३२१ तक) वे छह মাল নাল্লী- पुत्र और छह मास उज्जयिनी मे रहा करते थ। इन स्वामी भद्रवाट्‌ के जैन साध बनने की हड़ी गाचक कथा




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