प्रकाश में | Prakash Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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& ॥ कतव्य श सान प्रकाश में हमें कतैव्य का भी विशेष दर्शन हो रहा है | हम लोग कभी कभी गुरुज़नों से जब त्याग, तप, दान की महिमा सुनते हैं तब स्वीकार तो कर लेते हैं कि त्याग, तप, दान अवश्य करना चाहिये परन्तु इनका वास्तविक अर्थ न जानने के कारण यह कहने लगते हैं कि हम ग्रहस्थ हैं हमारे 'ऊपर अभी परिवार का भार है उनके प्रति हमारा वहत छुं कतव्य है} शुरुक्षान प्रकाश सें हमें यह ज्ञात हुआ कि प्रायः इम लोगों मे से अनेकों को कतेव्य का भावाथ नदीं विदित है क्योकि जैसा कुछ पथ कर्तव्य का किया जाता है उस दृष्टि से तो कर्तव्य पालत का पत्त त्यानी तपस्वी दानी नहीं होने देता । कर्तव्य पल के कारण ही भगवद्‌ मलन, साधन्‌ नहीं हो पाता, परन्तु ऐसा सोचना कत॑व्य का बहुत ही अनुचित अथ लगाना है । चस्तुतः कतव्य पालक व्यक्ति दी त्यागी तपस्वी सेवा परायण दानी और भगवदानुयगी होता दै । अपने कतव्य को पूणं करते दी जो होना चाहिये वह स्वतः ही हो जाता है । कतव्य का सरल अथ है 'करने योग्य' । करने योग्य वही है जिस से किसीका अहित न हो बरन दूसरों का हित हो। सर्बहितकारी (/हति ही करतंव्य है परन्तु उसमें भी हमारा उतना ही क्न्य है जितना कुछ हम कर सकते हैं और उतता ही कर सकते हैं जितना करने के लिये हमारे साथ साधन सुल्लप्त हैं । जो कुछ हम नहीं कर सकते अर्थात्‌ जिस की सिद्धि प क्‌ 8 | के साधन हमारे पास नदीं हैः वह हमारा कर्तव्य सही है।




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