जैन जीवन | Jain-Jeewan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ও प्रसंग दूसरा गई । भगवानने व्याख्यानमें फरमाया कि मरुदेवी माता मुक्त हो गई । मरतजी चमककर दादीको सम्मालने लगे तो मात्र शरीर ही मित्ना । बड़ा सारी आदचर्यजनक হম था। लोग कहने लगे कि पुत्र हों तो ऐसे ही हों । एक हजार वषेकी घोर तपस्यासे जो अनमोल न्वानरत्न प्राप्त किया, वह सवेप्रथम अपनी परस पूज्य माताजीक्रो लाकर दिया एवं उन्हे अनन्त मुक्किसुखों मे भेजा ।




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