जैन जीवन | Jain-Jeewan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ও प्रसंग दूसरा
गई । भगवानने व्याख्यानमें फरमाया कि मरुदेवी माता मुक्त हो
गई । मरतजी चमककर दादीको सम्मालने लगे तो मात्र शरीर
ही मित्ना । बड़ा सारी आदचर्यजनक হম था। लोग कहने लगे कि
पुत्र हों तो ऐसे ही हों । एक हजार वषेकी घोर तपस्यासे जो अनमोल
न्वानरत्न प्राप्त किया, वह सवेप्रथम अपनी परस पूज्य माताजीक्रो
लाकर दिया एवं उन्हे अनन्त मुक्किसुखों मे भेजा ।
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