सतसई सप्तक | Satsai Saptak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Satsai Saptak by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

Add Infomation AboutShyam Sundar Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( है ) कफे बोच में ही है। म॒ुक्तक+ एक ऐसी मुक्तामणि है जिसे चाहे श्राप शतकों, सप्तशत्तकाों वा सहस्कों की छाटी-बड़ो पिटारी में संप्रह करे' अथवा किसी प्रबंध के सूत्र में गूथें । गोसाई' तुलसीदासजी की दोहावली प्लौर सतसई में कई मुक्तक दोहे ऐसे # जो रामचरित- मानस के प्रबंध-सूत्र से अलग करके संचित किए हुए मुक्ता-मणि हैं । यद्यपि मुक्ताएं एक दूसरे से असंबद्ध एक राशि के रूप में कोष में भी जमा रखी जा सकती हैं, तथापि उनकी पू्णे शोभा तभी खिल सकती है जब वे सूत्र में पिरोई जाकर हार में गुथ जायें। इसी प्रकार मुक्तक पद्म श्री अपना पूरे प्रभाव तभी डाल सकता है जब बहद्द अपनी गर्वाीज्ञी स्वच्छंदता का त्यागकर प्रबंध फे बीच में श्रपना उचित आसन ग्रहण करे। प्रबंध का प्रभाव स्थायी होता है और मुक्तक का ज्णिक। प्रबंध में “उत्तरोत्तर अनेक दृश्यों द्वारा संघटित पूणे जीवन”? का दशेन करते हुए “क्रथा-प्रसंग की परि- स्थिति में अपने को भूलना हुआ पाठक मप्र हो जाता है श्रार हृदय में एक रथायो प्रभाव महण करता है ।' कितु “मुक्तक में रस के ऐसे स्निग्ध छींटे पड़ते हैं जिनसे हृदय-कलिका थोड़ो देर के लिये खिल उठती है ।”” उसमें श्रधिक से भ्रधिक “एक ममेस्पर्शी खंड- रश्यः के सहसा सामने ले आए जाने के कारण पाठक या श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाता है सही, किंतु कुछ क्षणों ही के लिये। शैज्ली की अत्यंत संक्षिप्तता के कारण प्रभाव भी कुछ क्षोण हो जाता है । परंतु इस र्वावलंबी संक्षिप्तता का अपना ही उपयोग श्रौर महत्त्व है। इसके कारण मुक्तक का वहाँ उपयोग हो सकता दे जहाँ प्रबंध का नहीं दो सकता। प्रबंध का आनंद उठाने के लिये स्वच्छंद अवकाश की आवश्यकता है। जहाँ मनुष्य एक दूसरे का समय कुछ प्ानंद- विनोद में व्यय कर रहे हैं वहाँ प्रबंध के लिये स्थान नहों है। सभा- समाजों के लिये मुक्तक की टी संक्षिप्त रचना उपयुक्त है। विद्वान




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now