शरतचंद्र : एक अध्ययन | Sharatachandra Ek Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपक्रमणिका ५ ही थे | स्वाभाविक रूप से वह एक 31©761{€व पुराने ठञ्ज की प्रस्तरीभूत चीज़ के रूप में थी, जिसे हम आधुनिक अर्थ में कहानी या उपन्यास ही नहीं कद सकते । समस्त युरोपखंड में {70प्०बव्वछपा तथा 1011४76 (चारण) के युग ॒का श्रवसान होकर सुन्दर गद्य लेखकों का बोलबाला दो रदा था, किन्तु बंगाल मे श्रमी भारतचंद्र, दाशुरायकादह्ीयुगथा | दाशुरायएक ऊचे दजंका या सिर पर चढ़ाया हुआआ 510711090 अब्हैत-मात्र था, किन्तु भारतचंद्र की भाषा नये युग की भाषा की अग्नदूती थी । उसको पढ़कर यह कना कठिन न होता कि उसमें आगे चलकर रवीन्द्रनाथ या शरत्चन्द्र के भावोंके वाहन के रूपमे परिणत होने की संभावना निहित थी । राजा राममोहन राय को ही इम श्राधुनिक बेंगला गद्य के जनक मान सकते हैं। यद्यपि यह बात याद रहे कि बँगला की जो प्रथम गद्य पुस्तक मानी जाती है वह राममोहन की लिखी हुई नहीं, बल्कि रास वसु का लिखा हुश्रा प्रतापादिव्य-चरित्रःथा। राजा राममोहन का जन्म कुछ लोगों के मत से १७७४ में हुआ, कुछ लोगों के मत से १७८० में | प्रतापादित्य-चरित्र १८०१ में प्रकाशित हुआ था, इस पुस्तक की पांडुलिपि को राममोहन राय ने शुद्ध तो किया था, किन्तु उनकी निजी कोई पुस्तक १८१५ के पहले प्रकाशित नहीं हो पाई। राजा राममोहन ने श्रपने गद्य का प्रयोग उपन्यास लिखने में नहीं किया, बल्कि उसे अपने मतों के प्रचार का वाहन बनाया। उन्होंने ऐसी पुस्तक लिखीं जेसे कठोपनिषद्‌, पथ्यप्रदान, वेदान्त । पुस्तकों के नामों से ही उनके विषय स्पष्ट हैं राममोहन राय बगला ग्य के जनक होते हुए भी भरी ईश्वरचन्द्र विद्यासागर कोदही यहश्रेय प्राप्त हुआ कि उन्होंने उसे पढ़ने योग्य बनाया । बंगला साहित्य मे उनका दान बड़ा दी महत्त्वपूण है । संस्कृत के अगड़धत्त विद्वान्‌ होते हुए भी विद्या- सागर ने बंगला को सरल तथा सुललित बनाया । पाख्य पुस्तकों में ही अक्सर लोगों का विद्यासागर से परिचय होता है, और वह परिचय




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