शिक्षा | Shiksha
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ नारायणदास खन्ना - Dr. Narayandas Khanna
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लेकिन मेरी सोची हुई वात ठीक न निकली। हर चीज़ वैसी ही
वनी रही जैसी कि चली आई थी, वल्कि उससे भी बदतर। पूणि
ने नरोदनया वोल्या” के सदस्यो को गिरफ्तार करना शुरू क्या। दाद
के हत्यारों को फांसी दे दी गई। फासी के लिए वे लोग उसी रास्ते
से ले जाये गये थे जिसपर मेरी पाठशाला पडती थी। शाम को मेरे चचां
ने मुझे बताया था कि जब मिखाइलोंव को फानसी दी जा रही थी उस
समय रस्सा खुद चरे से टूट पडा था।
हमारे कई क्रान्तिकारी दोस्तो को भी नजरवन्द कर दिया गया।
सामाजिक क्रियाशीलता ठप हो गई।
अध्ययन
पहले पहल मैने पढाई-लिखाई घर पर ही शुरू की। उन समय
मा ही मेरी अध्यापिका थी। मैने वहुत छुटपन से ही पटना शुरू कर
दिया था। मुझे पुस्तके प्यारी थी क्योकि वे मेरे लिए एक नयी दुनिया
का निर्माण करती थी। और मैं एक के वाद दूसरी, और फिर नीसरी ,
किताव ख़त्म करने लगी।
मैं पाठशाला जाने की इच्छूक थी, लेकिन जब मेने दस चर्ष 5
उम्र से वहा जाना शुरू किया तो वह मुझे अच्छी न लगी। दर्ना व
था-वहा हम लगभग पचास विद्यार्थी थे। मैं बहुत ही सर्मीती लणकी
थी और वात वात में परेशान हो उठती। किसी ने भी मेरी ओर हो:
ध्यान न दिया। भ्रव्यापके हमें काम देते, नाम ले ले कर पुकारते, पाठ
दुहरवाते भौर श्रक देते । प्रदन पूना कायदे के उिलाफथा। हमारे
दर्जे की श्रध्यापिका वेईमानी से काम लेती-उन घनी लटरिवो कौ तन्त
चप्मो करती जो श्रपनी श्रपनी गायो मे वैठ कर न्यून श्या रती
थी, और गरीवो जैसे कपडे पहने हुई लडक्यो पर भौवती अं
नुक्स निकाला करती । लेकिन वहा एक चीज़ इससे भा रनद
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স্ব
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