बापू ने कहा था | Bapu Ne Kaha Tha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bapu Ne Kaha Tha by श्री शंभुदयाल सक्सेना - Shri Shambhudayal Saxena

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री शंभुदयाल सक्सेना - Shri Shambhudayal Saxena

Add Infomation AboutShri Shambhudayal Saxena

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ক ५५, जी ক সি दा हतौ ` ) मन्दाः হল भाई पहेट, रणणुमारी प्रटुूनयौर व প্র ~ ^+ {~= * পি শে ক (न ग শরিক পি द्रो রি ক न्प धर हा एवटए पः गाम पवर्‌ प्रन {ट्‌ द्वि; । द सन्न तेना नर ज प्रात | पिमो प হান হন ধু 1 টাল বলা বত বাশ সালা । दिसा प हाथ को अ ৬. কি ৪৮ { ডা मेष्ये गल भ्यया ठे {ष नरीह रिनी ओ जीभ पर [1 महात्या गाजी शी पणता परिचित मा चतह । हो-मजाक धर भाप में दातायरएा शुघ है । एक तरह क्री उदासीनों हुई हर है। जनता एक भीद নি শী শন আল সী चुहुल का नाम शेष हो गया हो । भीउन्‍नाड भें यई्यारी पुर्मि रुदा से अधिक दिपाई पद रहो है परस्तु उमये भी चेहरे दे हुये हैं । प्रपने कर्तव्य पातम शौ तत्परता पे दिना रहं ह उत्तमे उपाह प्रौर उमगका लेश भी इशित नहीं हो रहा है। गाडी का द्वार छुलता हैं भौर वाएु फे दर्षन होते दार, उनके पीछे रायष्ुमारो ए श्रन्थ व्यक्ति हर के समीप पहुँचते है। शाप पैनी दृष्टि से बातायश्णा की मभीरता




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now