बापू ने कहा था | Bapu Ne Kaha Tha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री शंभुदयाल सक्सेना - Shri Shambhudayal Saxena
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ক ५५, जी ক সি
दा हतौ ` ) मन्दाः হল भाई पहेट, रणणुमारी प्रटुूनयौर व
প্র ~ ^+ {~= * পি শে ক (न ग শরিক পি द्रो রি ক
न्प धर हा एवटए पः गाम पवर् प्रन {ट्
द्वि; । द सन्न तेना नर ज प्रात | पिमो प
হান হন ধু 1 টাল বলা বত বাশ সালা । दिसा प हाथ
को अ ৬. কি ৪৮ { ডা
मेष्ये गल भ्यया ठे {ष नरीह रिनी ओ जीभ पर
[1
महात्या गाजी शी पणता परिचित मा चतह । हो-मजाक
धर भाप में दातायरएा शुघ है । एक तरह क्री उदासीनों
हुई हर है। जनता एक भीद নি শী শন আল সী चुहुल का नाम
शेष हो गया हो । भीउन्नाड भें यई्यारी पुर्मि रुदा से अधिक
दिपाई पद रहो है परस्तु उमये भी चेहरे दे हुये हैं । प्रपने कर्तव्य
पातम शौ तत्परता पे दिना रहं ह उत्तमे उपाह प्रौर उमगका
लेश भी इशित नहीं हो रहा है। गाडी का द्वार छुलता हैं भौर वाएु
फे दर्षन होते दार, उनके पीछे रायष्ुमारो ए श्रन्थ व्यक्ति
हर के समीप पहुँचते है। शाप पैनी दृष्टि से बातायश्णा की मभीरता
User Reviews
No Reviews | Add Yours...