अनेकान्त | Anekant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनेकान्त-58/1-2 13
के समान उनके जीवन में भी चारण-ऋद्धित्व एवं विदेह गमन का विवरण आया
(इनका विशप आधार नहीं मिलता) । वस्तुतः वे मानव से अतिमानव मान लिये
गये । इस पर अभी तक किसी ने प्रकाश नहीं डाला।
इन मतवादों के साथ उनके निश्वय-व्यवहारगत समयसारी विवरण तथा
उनके साहित्य की भाषा के स्वरूप आदि के कारण भी अनेक भ्रांतियां उत्पन्न
हुई हैं। उनके श्वेताम्बरों से शास्त्रार्थ, स्त्रीमुक्ति निषेध, अचेलकत्व-समर्थन
तथा टीका ग्रंथो आदि क॑ कारण उनके समय-निर्णय पर भी अभी भी
असहमति बनी हुई है। यह प्रथम सदी से सातवीं सदी तक माना जाता है।
सामान्य परम्परा के अनुसार, अनेक मूलग्रन्थों की टीकायें उनकी रचना के
अधिकाधिक तीन-चार सौ वर्प के अन्तराल से हुई हैं, जैसा सारणी-1 से प्रकट
है ।
सारणी 1 : मूलग्रन्थ और उनकी टीकाओं का रचनाकाल
क्र मूल ग्रन्थ रचनाकाल टीका टीकाकाल
लगभग लगभग
01 कपायपाहुड 1-2री सदी यतिवृषभ चूर्णि 5-6वी सदी
०२ पट्खण्डागम 1-श्री सदी पद्धति ऽरी सदी
03 तत्वार्थसूत्र 5-4थी सदी सवार्थसिद्धि 5वीं सदी
04 भगवती आराधना 2-ऽरी सदी आराधना पजिका কী অহী
05 मूलाचार 2-8री सदी वसुनदि 11वी सदी
06 कुन्दकुन्द ग्रथत्रय 2-5री सदी दो टीकाये 10-11ची सदी
07 श्वेतावर आगम सकलन वी सदी प्रथम व्याख्या साहित्य 6वी सदी
08. परीक्षामुख 10-11वीं सदी प्रमयकमलमार्तण्ड 11वी सदी
इस आधार पर कुन्दकून्द के समय का अनुमान लगाया जा सकता है।
उनके समयमसार ने तो जैनों का एक नया पंथ ही खडा कर दिया है जो
उनके अनेक कथनों के बावजूद भी एकपक्षीय बन गया है। वस्तुतः अनेकांतवादी
जैन अपने-अपने पक्ष के एकांतवादी हो गये हैं और महावीर के नाम पर उनके
दर्शन को ही विदलित करते जा रहे हैं। अनेक विद्वानों ने उनके निश्चय-व्यवहार
की समन्वय-वादिता पर विवरण दिये हैं। पर निश्चय तो अटल एवं अनिर्वचनीय
होता है, केवलज्ञान गम्य होता है। उसे गृहस्थ कैसे समझे और अनुभव में
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