प्राकृत काव्य सौरभ | Prakrat Kavya Saurabh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
Professor (Dr.) Prem Suman Jain D. Lit. , UDAIPUR
Born at Sinundi in Jabalpur Distt. in Madhya Pradesh on 1st August, 1942. Professor (Dr.) Prem Suman Jain is an eminent Prakrit Scholar and Jainologist by his commendable literary and research contribution. Dr. Jain retired as the Professor and Head of the Department of Jainology and Prakrit from M.L. Sukhadia University, Udaipur after over 30 years of service. He was also Dean, faculty of Arts and Dean Student Welfare in the University.
Dr. Jain has also served as Director and holding the Professor and H.O.D. Post in the D
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पालि शब्द की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानों मे एकमत नही है | भिक्षु
जगदीश काश्यप की स्थापना के अनुसार पलियाय' ( परियाय ) शब्द से
पालि रूप प्रचलित हृश्रा है, जो भाषा-तत्त्वों के श्रनुसार सभव है। भिक्षु
सिद्धार्थ सस्कृत के पाठ” शब्द का प्राकृतरूपान्तर पालि मानते हैं। प० विधिशेखर
भट्टाचार्य ने पालि शब्द को 'पक्ति' वाचक कहा है। इस मत को पालि भाषा
ग्रोर साहित्य का भी समर्थन प्राप्त है। इसके श्रतिरिक्त विदेशी विद्वानों मे
मेक्समूलर ते पालि को पाटलि (पाटलिषुत्र-पटना) का सक्षिप्तरूप मानादहै।
प्रथात् पालि पाटलिपृत्र मे बोली जाने वाली भाषा थी । एक श्रन्य मतके श्रनुसार
पालि की व्युत्पत्ति 'पल्लि' (गाँव) शब्द से सिद्ध करने का प्रयत्व किया गया
है। यद्यपि इन सभी स्थापनाओञो में कुछ न कुछ कमी है। किन्तु जिस प्रकार
से पालि भाषा का गठन हुआ उसको ध्यान में रखते हुए विभिन्न ग्राम वोलियो
के मिश्रण से इस भाषा का घिकास माना जा सकता है। अतः 'पलियाय
शब्द से पालिः रूप प्रचलित होना भ्रधिंक उचित प्रतीत होता है ।?
मिभितः भाषा होने के कारण पालि किस प्रदेश की भाषा थी यह कह पाना
भी बड़ा कठिन है। देशी-विदेशी विद्वानों ने इस सम्बन्ध में विभिन्न मत प्रगट
किये हैं। किन्तु यदि यह निश्चित हो जाय कि पालि में किस विशेष भाषा की
प्रमुबता थी तो उसके स्थान को भी खोजा जा सकता है। श्रधिकांश विद्वान्
पालि का श्राघार ऐमी भाषा को मानते हैं जो मगध मे बोली जाती थी। किन्तु
वह॒विशुद्ध मागधी नहीं थी। अतः प्राकृत के भेद-प्रभेदों में जिस मागधी
प्राकृत का उल्लेख श्राता है उससे यह कुछ भिन्तर थी श्रोर शायद इसीलिए पालि
का साट्श्य जितना वैदिक भाषा और पैशाची प्राकृत से है, उत्तदा श्रन्य किसी
प्राकृत से नही 1 इस प्रमे इसे श्राकृत का प्रारम्भिक या प्राचीन रूप भी स्वीकार
किया जा सकता है।
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साहित्य की टृष्टि से पालि पर्याप्त समृद्ध दै । स्थिविरवादी बौद्ध सम्प्रदाय
का सम्पूर्ण साहित्य पालि में लिखा गया है । सुत्तपिटक, विनयपिटक भौर प्रभि-
धम्मपिटक के प्रतिरिक्त श्रनुपिटक साहित्य भी बडी मात्रा मे लिखा गया है।
भारत के अतिरिक्त एशिया के कई देशो मे पालि वहा के साहित्य की भाषा रही
दै । बीसवी सदी तक में इसमे साहित्य लिखा जा रहा है । श्रत. प्राचीन भारतीय
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आनम ककव नो
द्रष्टव्य, पालि साद्ित्य का इतिहास, डा ° भरतरषिद उपाध्याय, पृष्ठ ८
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