अंतर्दृष्टि | Antardrashti

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महेंद्र कुमार - Mahendra Kumar

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विजयमुनि - Vijaymuni

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श्रीचन्द सुराना 'सरस' - Shreechand Surana 'Saras'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्रनतहंष्ठि पर एक हृष्टि भारतीय-संस्कति मे जैन-सस्कृति अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है । जैन- सस्ति का विविध वाड मय विनान तथा व्यापक ह । जीवन-स्पर्णी एक मी हृष्टि- कोण इम प्रकार का नही है, जिसके विपय मे जैन-वाड मय मे संख्यावद्ध ग्रन्य उप- लव्य न हौ । परन्तु यह समग्र वाट.मय संस्कृत, प्राकृत तथा अपश्र श भाषाओ में उपनिवद्ध किया गया है । अत आज का पाठक वर्ग प्राचीन भाषाओं से परिचय ল होने के कारण उस्र उ्वंर, सरस एव सुन्दर साहित्य का आनन्द नही ले सकता ! मौमाग्य से इस साघुनिक-युग मे हिन्दी मापा मे प्राचीन ग्रन्थो का अनुवाद प्रारम्भ हो चुका है। मले ही हिन्दी में मौलिक ग्रन्थ उपलब्ध न हो, फिर भमी पर्याप्त सस्या में प्राचीन साहित्य सामग्री को हिन्दी भाषा में अवतरित किया जा रहा है यह्‌ एक मविष्य के लिए मगलमय सकेत है । जैन-परम्परा का अधिकाश साहित्य घर्म-दशेन तथा मागम से सम्बद्ध है। काव्य के क्षेत्र मे जैनाचार्यो ने जो उपादेय महयोग दिया है, वह अत्यन्त अल्प भले ही हो, किन्तु उस क्षेत्र को शून्य नही कहा जा सकता । आचार्य हेमचन्द्र का काव्यानुशासन तथा वागूभट का वागमभट्टालकार काव्य-शास्त्र सम्बद्ध प्रसिद्ध ग्रन्थ है। जैनाचार्यो ने इस विपय पर ग्रन्थ लिखे अवश्य, पर उनका पर्याप्त परिषप्कार नहीं हो सका । यद्यपि साहित्यिक क्षेत्र मे सम्प्रदायवाद को लेशमात्र भी अवकाश नही है, तथापि मनुष्य का सम्प्रदाय मोह टूट जाना उतना सहज नही है। यही कारण है कि भारत के विशिष्ट विद्वान अभी जैन वाड मय की ओर उतने उन्मुख नही हुए, जितना होना आवश्यक है। स्वय जैन भी इस दिल्ला मे विशा-शून्य और साथ ही विचार-शून्य प्रतीत होते हैं। काव्य-शास्त्र तथा काव्य के क्षेत्र मे जैनाचार्यो का योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा है । भारतीय-साहित्य ज्ञास्त्र को समझने के लिए जैन-आचार्यों द्वारा प्रणीत काव्य-शास्त्र ग्रन्थो के अध्ययन की परम्परा अव विकसित होती जा रही है । कुछ विद्वानों ने इस दिशा में मात्र प्रयास ही नही किया, सफलताएं भी प्राप्त की हैं । জন वाड मय का द्वितीय क्षे प्रवचन-साहित्य अथवा प्रवचन-कला है।




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