बुद्ध चरित | Bodh Charit

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Bodh Charit by सूर्यनारायण चौधरी -Suryanarayan Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्म॑ १५ ; धर्मचक्र-प्रवतेन ७ आदमी कामवासनाओ मे “आसक्त होकर शान्ति कहाँ से पायेगा १ ३३. जैसे जलाबन (--आश्रय ) के लिए सूखी घास रहने पर और हवा से वीजित (: प्रेरित ) होने पर आग नहीं बुझती है, वैसे ही राग का साथ व काम का आश्रय पाकर चिक्त शात नहीं होता है । ३४. दोनो अन्तो ( तप ओर भोग ) को छोडकर मेने तीसरा ही ' पाया है--८( वह ) मध्यम मार्गं (दै )-जो दुःख का अन्त करके प्रीति-सुख के परे चला जाता है । ३५. सम्यक्‌ दृष्टिस्पी सूर्य इसे प्रकाशित करता दै, सम्यक्‌ सड्डुल्परूपी रथ इस पर चलता है, ठीक ठोक बोली गई सम्यक्‌ वाणी ( इसके ) विहार ( विश्राम-स्थल ) है, ओर यह सम्यक्‌ कर्मान्त ( सदाचार ) के सौ सो उपवनो ८ कुञ्जो ) से प्रसन्न ( उज्बल ) है। २६: यह सम्यक्‌ आजीविकारूपी सुमिक्षा ( सुलूम मिक्षा ) का उपभोग करता है ओर सभ्यक्‌ व्यायाम ८ प्रयत्न ) रूपी सेना व परिचार- कगण से युक्त दै ; यह सम्यक्‌ स्मृति ( सावधानी, जागरुकता ) रूपी 'किलेबन्दी से सब ओर सुरक्षित है और ( सम्यक्‌ ) समाधि ( मानसिक एकाग्रता ) रूपी शय्या व आसनं से सुसजित है । ३७. इस जगत्‌ मे यह एेा परम उत्तम अशङ्धिक मार्ग है, जिपके द्वारा লীন बुढ़ापे व रोग से मुक्ति मिलती है | ३८. यह केवल दुःख है, यह समुदय ( कारण ) है, यह निरोध है, और यह इसका ( निरोध-) मार्ग ; इस प्रकार निर्वाण के हेतु अमूत- पूव एवं अश्रुतपूर्व धर्म-पद्धति के लिए, मेरी दृष्टि विकसित हुईं । ३९. जन्म जरा रोग और मरण भी, इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग,




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