समाधितंत्र और इष्टोपदेश | Samadhitantra Aur Ishtopdesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
357
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
धमपरीक्षाके कर्ता वृत्ततिलासको असका होना नहीं कहा जा सकताः क्योंकि
शज्यपादस्वामी गंगराजा दुरविनीतके शिक्षागुरु ( 17८५ ८]0॥01 ) थे, जिसका
राज्यकाल ई० सनू ४८२ से ५२२ तक पाया जाता है और उन्हें हेब्बुर आदिके
अनेक शिलालेखों ( ताम्रपत्रादिकों ) में 'शब्दावतार' के कर्तारूपसे दुविनीत
राजाका गुरु उल्लेखित किया है )९ ।
इष्टोपदेश आदि दूसरे ग्रन्थ
इन सब म्रन््थोंके अ्रतिरिक्त पृज्यपादने और कितने तथा किन किन अन््थोंकी
रचना की हे इसका अनुमान लगाना कठिन है--'इष्टोपदेश” और 'सिद्धुमक्कि-:-
जैसे प्रकरण-अम्थ तो शिल्ालेखों आदिसें स्थान पाये बिना ही अ्रपने अस्तित्व
एवं महत्वको स्वतः ख्यापित कर रहे हैं । इष्टोपदेश” ५३ पद्योंका एक छोटा सा
यथानाम तथागुणसे युक्र सुन्दर आध्यात्मिक अन्थ है जो पहले पं० आशाधरजीकी
संस्कृतटीकाके साथ माणिकचन्त्र-पन्थमालासें प्रकाशित हुआ है और अब हिन्दी
दीकाके साथ सी यहाँ श्रकाशित किया जा रहा है ।
सिद्वमक्कि/ £ पद्मोंका एक बड़ा हो महत्वपूर्ण 'सम्भीरार्थक' प्रकरण है
इसमें सूत्ररूपसे सिद्धिका, सिद्धिके मार्गका, सिद्धिको प्राप्त होने वाले आत्माका,
ध्रा्मविषयक जेनसिद्धान्तका' सिद्धिके क्रमका, पिद्धिको भप्त हुए सिद्धान्तोंका
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> देखो 'कुर्गइन्स्करिप्शन्सः भू० ३) मैसूर एण्ड कुगेः जिल्दे 9, प्रु० २७३
कर्णटिकमापाभूषणम्' मू° সত १२; हिस्टरी फ़ कनदीज ভিতইন ० २५
और कर्णाटककविरिते' ।
~ विद्धमङ्गिके साय श्रुतभङ्गि, चरित्रमह्गि, योगिभि, श्राचार्यम्ि
निरवोिभक्रि तथा नल्दश्वरभङ्गि नामके संस्कृत प्रकरण भी पूज्यपाद प्रसिद्ध हे ।
क्रियाकलापके टीकाकार प्रभावन्दने श्रपनी मिद्धमक्किरटीकामें ““पस्क्ृताः सर्वाभ्यः
पएज़्यपादस्वामिक्ृताः प्राकृतास्तु कुन्दकुन्दाचार्यक्रताः” इस वाक्यके द्वारा उन्हें पूज्य-
पाद-ङृत बतलाया हे । ये सब भक्तिपाठ “दशभक्कि” आदिें स्ुद्धित द्वोकर प्रका-
शित होचुके हैं ।
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