रंगभूमि | Rangbhoomi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.94 MB
कुल पष्ठ :
456
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रंगभूमि २3
सर्दी तक कि विनय ने इन शुश्रपाश्यों से तंग 'ाकर टॉक्टर से कददा--
“में बिलकुल श्रच्छा हूँ, शाप शव जायें, शाम को झाइएगा 1”
डॉक्टर साइबर दरते डरते योले--'“श्रापको ज़रा नींद रा जाय; तो मैं
चला जाएँ 1”
. प्रिनय ने उन्हें विश्वास दिज्ञाया कि आपके विदा होते हो मुझे नींद
पा जायगी । डॉक्टर 'दपने पराधों की क्षमा माँगते हुए चज्े गए । इषी
जहदाने से विनय ने दारोगा को भी खिसझाया, जो '्ाज शील और दया के
पुतने बने हुए थे । उन्दोंने समसा था, मेम सादव के चले जाने के वाद
दुष्षकी खुब खबर लूँगा ; पर वदद श्रमिज्ञापा पूरी न हो सकी ! सरदार
साइब ने चलते समय जता दिया था कि इनके सेचा-सत्कार में कोई कलर
न रखना, नहीं तो मेम सादव जदन्नुम मेज देंगी ।
शांत विचार के लिये एकाप्रता उतनी ही श्ावश्यक है, जितनी 'प्यान के
लिये । वायु की गति ततराज़ू के पलद़ों को बरावर नहीं होने देती । विनय
को भव विचार हुआ--'श्रम्माजी को यदद दाल मालूम हुआ, तो वदद 'पने
सन में क्या कहेंगी । मुझते उनकी कितनी मनोऊझमनाएँ संपद्ध हैं । सोफ़ी
के प्रेम-पाश से बचाने के लिये उन्होंने मुझे निर्वासित किया, इसीशिये
सन्होंने सोफ़ी को कलंक्रित किया । उनका हृदय टूट जायगा । दुःख तो
पिताजी को भी होगा ; पर बढ सुखे च्मा कर देंगे, उन्हें मानवीय-दुर्घल-
'ताथों से सद्दानुभूति है । ्म्माजी में बुद्धि-दी-बुद्धि है ; फ्ताजी में हृदय
ग्यौर बुद्धि दोनो दी हैं । लेकिन मैं इसे दुबलता क्यों कहूँ? में कोई ऐसा
काम नहीं कर रहा हूँ, जो संसार में कसी ने न दिया दो । संसार में ऐसे
कितने प्राणी हैं, जिन्दोंने पने को जाति पर होम कर दिया दो ? स्वार्थ
के साथ जाति का ध्यान रखनेवाले मद्दानुभावों ही ने श्रब तक जो कुछ
किया दै; किया है । जाति पर मर मिटनेवाले तो'उ गलियों पर मिने जा
. सरते हैं । फिर जिस जाति के अधिकारियों में न्याय और विवेक
नहीं; प्रजा में उत्साह श्औौर चेष्टा नहीं, उसके लिये मर मिटना व्यर्
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