रंगभूमि | Rangbhoomi

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Rangbhoomi by दुलारेलाल - Dularelal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रंगभूमि २3 सर्दी तक कि विनय ने इन शुश्रपाश्यों से तंग 'ाकर टॉक्टर से कददा-- “में बिलकुल श्रच्छा हूँ, शाप शव जायें, शाम को झाइएगा 1” डॉक्टर साइबर दरते डरते योले--'“श्रापको ज़रा नींद रा जाय; तो मैं चला जाएँ 1” . प्रिनय ने उन्हें विश्वास दिज्ञाया कि आपके विदा होते हो मुझे नींद पा जायगी । डॉक्टर 'दपने पराधों की क्षमा माँगते हुए चज्े गए । इषी जहदाने से विनय ने दारोगा को भी खिसझाया, जो '्ाज शील और दया के पुतने बने हुए थे । उन्दोंने समसा था, मेम सादव के चले जाने के वाद दुष्षकी खुब खबर लूँगा ; पर वदद श्रमिज्ञापा पूरी न हो सकी ! सरदार साइब ने चलते समय जता दिया था कि इनके सेचा-सत्कार में कोई कलर न रखना, नहीं तो मेम सादव जदन्नुम मेज देंगी । शांत विचार के लिये एकाप्रता उतनी ही श्ावश्यक है, जितनी 'प्यान के लिये । वायु की गति ततराज़ू के पलद़ों को बरावर नहीं होने देती । विनय को भव विचार हुआ--'श्रम्माजी को यदद दाल मालूम हुआ, तो वदद 'पने सन में क्या कहेंगी । मुझते उनकी कितनी मनोऊझमनाएँ संपद्ध हैं । सोफ़ी के प्रेम-पाश से बचाने के लिये उन्होंने मुझे निर्वासित किया, इसीशिये सन्होंने सोफ़ी को कलंक्रित किया । उनका हृदय टूट जायगा । दुःख तो पिताजी को भी होगा ; पर बढ सुखे च्मा कर देंगे, उन्हें मानवीय-दुर्घल- 'ताथों से सद्दानुभूति है । ्म्माजी में बुद्धि-दी-बुद्धि है ; फ्ताजी में हृदय ग्यौर बुद्धि दोनो दी हैं । लेकिन मैं इसे दुबलता क्यों कहूँ? में कोई ऐसा काम नहीं कर रहा हूँ, जो संसार में कसी ने न दिया दो । संसार में ऐसे कितने प्राणी हैं, जिन्दोंने पने को जाति पर होम कर दिया दो ? स्वार्थ के साथ जाति का ध्यान रखनेवाले मद्दानुभावों ही ने श्रब तक जो कुछ किया दै; किया है । जाति पर मर मिटनेवाले तो'उ गलियों पर मिने जा . सरते हैं । फिर जिस जाति के अधिकारियों में न्याय और विवेक नहीं; प्रजा में उत्साह श्औौर चेष्टा नहीं, उसके लिये मर मिटना व्यर्




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