आदि मणि पंत | Aadi Mani Pant
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra,
श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao,
श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao,
श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
729
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
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श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao
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श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीधर पाठक
८ इन नदि के रम्य तीर पर, भूमि मनोहर हारयाली
चिपया हुआ उसी के तठ से, उज्ज्बल उच्च विश
शोभित है एक महर बाग मे आगे द् णक ताल |
८उस समग्र बन, भवन बाग का मेरा बाप ही खामी था
घर्मशीछ, सत्कर्मनिष्ठ वह जमींदार एक नामी था ।
बडा धनाव्य, उदार, महाशय, दीन-दरिद्र-सहाय ,
कृषिकार्रा का प्रेमपात्र, सब विधि सदगुण समुदाय |
“परी बाल्य अवस्था ही में, माँ ने किया स्॒र्ग प्रधान ,
रही अकेली साथ पिता के, थी में उसकी जीवन प्रान ।
बड़े स्नेह से उसने मुशको पाछा पोसा आप ।
सब कत्याओं को परभेश्बर देवे ऐसा बाप ।
धो घंटे तक सन्ने निय वह भ्रम से आप पढ़ाता था ,
विद्या-विषयक विविध चातुरी, नित्य नई सिखलछाता था।
करूँ कहाँ तक वर्णन द उसकी अतुल दया का মান? द
हुआ न होगा किसी पिता का ऐसा मृदूल खभाव |
“हैं ही एक बालिका, उसके सत्कुल में जीबित थी शेष ,
इससे स्वत्व बाप के धन का प्राप्य मुझी को था निःशेष ।
था यथार्थ में गेह हमारा, सब प्रकार सम्पन्न ।
ईब्वर-तुल्य पिता के सम्मुख, थी में पूर्ण प्रसन्न ।
_“इमजोछी की सखियों के संग, पढ़ने लिखने का आनन्द ,
परमप्रीतियुत प्यार परस्पर, सब्र विधि सदा सुखी खच्छन्द् ।
सुख ही सुख में बीता मेरा बचपन का सब काल
ओर उसी निरन्त दशा म लगी सोरी साल ।
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