आदि मणि पंत | Aadi Mani Pant

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डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

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श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao

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श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीधर पाठक ८ इन नदि के रम्य तीर पर, भूमि मनोहर हारयाली चिपया हुआ उसी के तठ से, उज्ज्बल उच्च विश शोभित है एक महर बाग मे आगे द्‌ णक ताल | ८उस समग्र बन, भवन बाग का मेरा बाप ही खामी था घर्मशीछ, सत्कर्मनिष्ठ वह जमींदार एक नामी था । बडा धनाव्य, उदार, महाशय, दीन-दरिद्र-सहाय , कृषिकार्रा का प्रेमपात्र, सब विधि सदगुण समुदाय | “परी बाल्य अवस्था ही में, माँ ने किया स्॒र्ग प्रधान , रही अकेली साथ पिता के, थी में उसकी जीवन प्रान । बड़े स्नेह से उसने मुशको पाछा पोसा आप । सब कत्याओं को परभेश्बर देवे ऐसा बाप । धो घंटे तक सन्ने निय वह भ्रम से आप पढ़ाता था , विद्या-विषयक विविध चातुरी, नित्य नई सिखलछाता था। करूँ कहाँ तक वर्णन द उसकी अतुल दया का মান? द हुआ न होगा किसी पिता का ऐसा मृदूल खभाव | “हैं ही एक बालिका, उसके सत्कुल में जीबित थी शेष , इससे स्वत्व बाप के धन का प्राप्य मुझी को था निःशेष । था यथार्थ में गेह हमारा, सब प्रकार सम्पन्न । ईब्वर-तुल्य पिता के सम्मुख, थी में पूर्ण प्रसन्‍न । _“इमजोछी की सखियों के संग, पढ़ने लिखने का आनन्द , परमप्रीतियुत प्यार परस्पर, सब्र विधि सदा सुखी खच्छन्द्‌ । सुख ही सुख में बीता मेरा बचपन का सब काल ओर उसी निरन्त दशा म लगी सोरी साल ।




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