हिन्दू मुसलिम एकता | Hindu Musalim Ekata
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
भारत के स्वाधीनता आंदोलन के अनेक पक्ष थे। हिंसा और अहिंसा के साथ कुछ लोग देश तथा विदेश में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जन जागरण भी कर रहे थे। अंग्रेज इन सबको अपने लिए खतरनाक मानते थे।
26 सितम्बर, 1886 को खतौली (जिला मुजफ्फरनगर, उ.प्र.) में सुंदरलाल नामक एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। खतौली में गंगा नहर के किनारे बिजली और सिंचाई विभाग के कर्मचारी रहते हैं। इनके पिता श्री तोताराम श्रीवास्तव उन दिनों वहां उच्च सरकारी पद पर थे। उनके परिवार में प्रायः सभी लोग अच्छी सरकारी नौकरियों में थे।
मुजफ्फरनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुंदरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर कालिज में पढ़ने गये। वहां क्रांतिकारियो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १३ ]
इसके बहुत दिन बाद वह समय आया जिसे हम मोटे तौर
पर पुराणों ओर महाभारत का समय कह सकते हैं ।
पुराण लिख गये । शाक्त, शौव, ओर वेष्णव, अलग इष्ट--
देवों के अलग-अलग उपासक पेदा हो गये । अलग अलग
सम्प्रदायों में तरह तरह के तिलक लगाये जाने लगे । कोइ १११
नंबर का, कोई इस तरह और कोइ उस तरह । जनेऊ कोई
तीन धागे का, कोइ छे का तो कोइ नो धागों का | तरह तरह
के देवी देवताओं की पूजा शुरू हो गई | यह पौराणिक समय
था। उसी समय महाभारत का युद्ध हुआ । महाभारत अन्थ
का ही एकर हिस्सा भगवत गीता है। उपनिषद दिन््दुओं में से
किसी ने पढ़े हों या न॒पढ़े हों, में सममता हूँ काफी भाई ऐसे
होंगे जिन्होंने भगवत गीता जरूर पढ़ी होगी। में चंद मिनट
के लिये प्रार्थना करूँगा कि बह मेरे साथ साथ भगबत गीता
की तालीम परर विचार करें | हमारी यह बदक़रिस्मती है कि
आज गीता जैसी पुस्तक के द्वोत हुए भी हिन्दू धम ओर हिन्दू
संस्कृति असली रूप में हमारे दिलों के अन्दर नहीं समाने
पाती | मुझे आज हिन्दू ओर मुसलमान, इसाद् ओर पारसी
सब्र के अन्दर एक ही आत्मा दिखाई दे रही है । मेने यह्
भगवत गीता हो स सीखा है । अगर हिन्दुओं ने भगवत गाता
ध्यान से पढ़ी होती और उस पर अमल किया होता तो आज
इस दश की यह दुगेति न होठा । थोडी द्र कं लिये पहले
अध्याय से लेकर १८वें अध्याय तक सरसरी तौर पर गीता
को दुहरा जाइये । गीता से पता चलता है कि उस समय देश
के श्रन्दर तरह तरह के धर्म और तरह तरह के सम्प्रदाय या
रस्म रिवाज चल रहे थे ।अजुन ने युद्ध मेंरिस्सा लनेके
खिलाफ़ जो सब से पहली ओर सब से बड़ी दल्लील पेश की
थी वह यह थी कि “अगर में युद्ध में हिस्सा लूँगा तो हमारे
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