मानस का हंस | Mans Ka Hans

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Mans Ka Hans by अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानस का हस १५ «हम तो कहते हैं कि ऐसी घरमपतनी सबको मिले | भौरो वी तो फसाय देती हैं पर दादी ने तो बावा वी बिगड़ी वनाय दी | हमरी जान मे भब गाद मे बावा की उमिर वे कहे वकरीदी बाबा झौर रजिया নাবা हूँ । बबरीदी बावा बताते तो हैं कि बाबा से चार दिन बडे हैं| भौर राजा अहिर इनसे एक दिन छोटे हैं । रजिया वववा, बकरीदी चच्चा हम जानी सौ बरस के तो जरूर होयगे।” “नाही, बप्पा से दस वरिस बड़े हैं। झरे दुआ য়া হাল ই ভাবী বা?” बसने परी हैं अवही तो । बोल-वोल तो पहले ही बन्द होड चुका है । जानं काहे भा परान अटके ই । “कुछ भी कह्टौ, चाकी एक पाप तो इनसे भया ही भया। पती देवता से कुदचन बोली, तौन वह घर से निकरि गए 1 * राम राम, झनाडी जैसी बात ४ अचानक वकरीदी दर्जी का छोटा बेटा बूढा रमजानी दौडतां हरा प्राता दिखलाई दिया । निठल्ले गस्व्राय मे कौतूहलवश विध्न पडा । ६१-६२ व के बूढ़े रमजानी का दौडना झ्राश्वयकारी था । दूर से ही वोला--“ककुग्रा, ककुप्रा, होसियार । बावा झ्राय रहे हैं ।' «মই कौन बावा २! गुसाइ बावा ' गुसाइ वावा * पझरे अपनी रतना कावो के /” दो शिष्यो, राजा भहिर, झपने जवान पोते की पीठ पर छदे बकरीदो दर्जो लिवदीन दुव नहकू मनरू स्‍भ्ादि गाव के कई लोगो के साथ गोस्वामी तुलसीदास जी घीरे धीरे झा रहे थे। बाबा के शिध्या मे से एक रामू द्विवेदी उनके साथ काशी से श्राया थां। उसको झायु त्तीस-उत्तोस के लगभग थी | दूसरे विष्य ছাতার লিঙ্গ निवासी एक सत जी थे। भाजानुवाहु चमकते सोने-सी पीत देह लम्बी सुतवां नाक, उमरी ठोडी पतले होठ सिर झौर चेहर के बाल घुटे हुए माथे, बाहां परोर छाती पर बेष्णव तिलक था । काया कृश होने पर भी व्यायाम से तनो हृद भव्य सगरती धी 1 लगता था मानो मनुष्या बे समाज मे कोई देवजाति का पृख्य प्रा गया है । बायें हाथ म कमण्डलु, दाहिने हाय मे लाठो, गले मे जनेऊ भोर तुलसी मी सालायें पडी थी । वे जवानो वी तरह से तनकर चल रहे ये । “मैया तुम बहुत भटक गए हा 1 कसा राजः न्र-सा सरीर रहा तुम्हारा ।” सत-पुहस्प राजा जो याबा से भायु मे वेवल एक दिन छोटे पर स्वस्थवाय ये, स्नेह से याबां को देखकर बलि । बादा ने कहा-- 'पिछले घ्ाठ-नो यरसा से वात रोग ने हमका ग्रस लिया है। दाह म पीडा हुई, फिर सारे शरोर म होने लगी | बस हनुमान जी भोर ब्यायाम ही जिसा रह हैं हमको । बाकी ववरीदी भया से हम बहुत तगड़े हैं। चार ही दिन ठो बडे हैं हमसे | भोर तुम्हारा जी चाह तो तुम भी हमसे पंजा संडाय सेद राजा 1” एक हंसी को लहर दोड गई । उसी समय झपन घर से मुगटा पहने बावा के पुराने शिष्य, पड़सठ-उनहत्तर बर्षीय पण्डिद गणपति उपाध्याय नये पैसे दोड़ते




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