सर्वोदय की दिशा में | Sarvodaya Ki Disha Main
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नहिता ५
0 शि
एसी परिस्थिति मे जो मानव सृमवूम रखते दै, जो
मानव व्यक्ति ओर समाज की कमियों शरीर गुर्णों की जान-
कारी रखते दै, जो मानव श्रपनी बुद्धि में विश्वास फरते है
ओर अपनी दुष्प्रद्वतियों को काबू में रपना चाहते ह तथा
रख सऊते हे, उनऊे लिए एफ ही मार्ग है श्र वह दहै समम
चूर फर, चलपूर्वफ, विश्वासपूर्वक अपने व्यक्विगत ओर
सामाजिक जीवन फे लक्ष्य या लक्ष्यों वी प्राप्ति के लिए
केवल अहिंसा को ही साधन बनाना। व्यक्तियों फे साथ
समाज भी धीरे२ अहिसा के साथनों पर द्वी चलने लगेगा
अर वही ध्यक्ति तर समाज की सच्ची, वास्तविक प्रोर
आदश स्थिति होगी। इसके विपरीत जो स्थिति है वह मृ टी
है, अवास्तत्रिक है ल्रोर अवांधनीय है।
यह प्रश्न फ्िया जा सकता ই कि श्राज णी दुनिया
की परिस्थितियों में जब हिसा आर पशुता प्रचल हो रही
है, वह पूर्ण 'प्रहिसा जोर मानवता की स्थिति का प्रीर केले
था सकती हे ? यह् प्रश्न एक प्रकारसे तो निरंधघऊ ही है,
क्योंकि वह स्विति रूभी आवेया फभी नहीं শী কপার লা
चाहे एक व्यक्ति ही एसजा ज्यपहारी हो, फिर भी जो सही
है, वाजिवय है. आदशेरुप है, वदी प्रशसनीय है चीर प्राप्य
ই) নী কলে योग्य ह न्य झुछ नहीं। दूसरी ছি শী
जप हम मानते ष्टः क्ति यह रिवाति सद्दी दे तो सियाय उसमे कि
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