राजस्थानी साहित्य कुछ प्रवृत्तियां | Rajasthanu Sahitya Kuch Pravritiyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तब राजस्थाना साहएबय * ৬ 2 5
জা तन्मय होकर वर्णन किया है वहां उनकी विवद्ञताशों और इुर्बलताग्रों को
भी तटस्थ-भाव से देखा है। वारतापरक ख्यात की प्रतिनिधि स्वना भहता
नैरासीरी स्थात है । नैखसी ने स्यात-रचना पद्धति को ननीन सूप दिया ।
उन्होने ख्यात का स्वरूप केवल राजवंशी क्रमबद्धता तक ही सीमित न रखकर
उसे विविध वार्त्ताओं के संकलन की दृष्टि तक विकसित कर दिया । इस संकलन
से जो इतिहास का रूप निखरता है वह किसी एक राजवंश करा न होकर विभिन्न
राजवंशों श्रौर विविध प्रदेशों का है । यहां जो वार्ताए पाई हैं वे कलात्मक गद्य
की बातें न होकर विशुद्ध ऐतिहासिक वार्ताएँ' हैं जिनका उह श्य घटना-वैचित्य
प्रौर मनोरंजन न होकर तथ्मचित्रणा और इतिहास-लेखन हैं। व्यक्तिपरक ত্যাতা
में ख्यात लेखक ने श्रपने किसी एक प्राश्य दाता की जी भर कर प्रशंसा की है,
उसके पराभव को भी विजयश्री से मंडित दिखलाया है | इन स्यातों का महत्व
हेतिहासिक दृष्टि से न्यून है पर तत्कालीन जीवन के सामाजिक अध्ययन की दृष्टि
सेरप्रधिक है । स्कुट रुपातों में उतर रचनोग्नों को रक्खा जा सकता है जो छोटे-
छोटे फुटकर “नोट्स” के रूप में हैं श्रोर जिनका कोई कम नहीं है । 'बांकीदासरी
स्यात' ऐसी ही रचना है। इसमें २७७६ बातों का संग्रह है। सच्चे झर्यों में इसे
स्यात नहीं कहा जा सकता क्योंकि “लेखक को जब जो बात नोट करने योग्य
मिली, उसने तभी उसे नोट^करलिया । उनमें कोई क्रम नही है। क्रम से बगाने
पर भी उससे म्ंललाबद्ध इतिहास नहीं बनता । प्रधिकांश बातें दो-दो भ्रयवा
_तोन-तीन पंक्तियों की हो हैं। पूरे एष्ठ तक चलने वाली बात कोई बिरलौ
ही दहै” 1
ख्यात क भतिरिक्त वात, हाल, हगौगत, विगत, श्रादि एतिहासिक यद्य के
्रनेक रूप मिलते है । “ख्यातः क्र मुख्य विशेषता यह होती है कि उसमे सामन्यतः `
बन्ध रूप म लिला हमरा क्रमानुगत वर्णन होता है जबकि ये प्रन्य रूप किसी
एकाध प्रसंग को लेकर ही अपनी /यात्रा समाप्त कर लेते हैं। “ह्यातः प्रौर इन
वात प्रादि शरन्यरू; वीच एक तीसरा रूप श्रौर है जिसमें प्रधानतः एक
व्यक्ति के जीवन से संबंधित घटनाग्रों का विस्तृत वर्शान तथा श्रन्य प्रासंगिक
उल्लेख भी रहते हैं । इस रूप को फारसी के नामा? नामक ग्रन्थो के समकक्ष
रखा जा सकता है । दलपत विलास 3 इसी प्रकार का एक.प्रन्य है जिसमें बीकानेर
१-बांकीदास री खुयात : श्री नरोत्तमदास स्वामी, प्रस्तावना पृ० 1 स उनो, जिना पद. र
२-बाबरनामा, हुमायू नामा, श्रकबरनामा, जहाँगीरनामा श्रादि ग्रन्थ । द
३-सम्पादक : राषत सारस्वत, प्रकाशक-सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीस्य(ट,
बीकानेर। 3.4९ চিনা উজ के
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