पुरातन-जैनवाक्य-सूची | Puratana Jainvakaya Suchi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अर्वन । |
ऐसा नहीं होता--उसमें ऋमप्राप्त एक ही स्थानपर दृष्टे डाज्षनेत दस वाक्यके अग्तित्वका शीघ्र
पता चल जाता है | चुनाँचे इस विषयमें डा० ए० एन० उपाध्येजीसे परामश शिया गया तो
एनकी লী यही राय हुई कि सत्र मंथोक वाक्योंका एक ही जनरल अनुक्रम रक्खा जाय, इससे
बतंमान तथा मविष्यकालीन सभो विद्वानोंकी शक्तित एवं समयक्ी बहुत इड़ी बचत होगी भोर
अनुसंघान-कार्य को भ्रगति मिलेगी । श्रन्तकरो यकौ निश्चय हो गया कि सब वाक्योंका (अकारादि
क्रमस) एक ही जनरल अनुक्रम रक्खा जाय । इस न्श्वियके अतुसार प्रक्तुत कार्यके लिये
अपने पासको पद्यानुक्रमसू'चयोका अन्न केवल श्तना ही उपयोग रह गया कि उनपरसे कारों
पर भ्रक्षरफ्रमानुसार वाक्य लिख लिये जायें। साथ ही प्रत्येक वाक्यके साथ भंथका नाम
जोइनेकी बात बढ़ गई। और इस तग्द् वाक्यसूचीका नये सिरेसे निर्माए-का्य प्रारम्भ हुआ
तथा प्रद्शाशनकाये एक लम्बे समयके लिये टल गया ।
सूचीके इस नब-निर्माणकायमें बीरसंवामादरके अ- क विद्वानोंसे भाग लिया है-.
जो जो विद्वान नये आते रहे उनकी अवसर योजना कार्डोपर वाक्योके लिखनेमें होती रही |
फार्दोपर चटुकम देने थवा अनुक्रमकों जॉचरका काम प्रायः मुझे ही स्वयं करना
होता था, फिर अनुक्रमवार साफ कार्पी की जाती थी। इस बीचमें कुछ #ये प्राप्त पुरातनप्रंथों
फे वाक्य भी सूर्चामें यथास्थान शामिल द्वोते रहे हैं। कार्डीकरण झोर काश परसे अनुक्रमवार
फापीका अधिकांश कार्ये ५० ताराचरदजी दशेन्शास्त्री, ५० शंकरलालजी न्यायतर्थं तथा
९० परमानन्दजी शास््राने किया है) धरर दस काममें कितना द्वी समय निकल गया है।
साफ बार्पके पूरा होजानपर जघ प्रंथको प्रेसमें देनेके लिये उसकी जाँचका
समय आया तो यह मारूम हुआ कि प्रंथमें कितने ह्वी वाक्य रूची १.एंसे छूट गये हैं
ओर बहुत८ वाक्य अशुद्धरूपमें संगृहीत हुए हैं, जिनमेंसे कितने ही मुद्रित प्रतियोभ चअशुद्ध
छपे हैं और बहुतस दृस्तलिखित प्रातियोमें अशुद्ध पाये जाते हैं। अतः भ्रन्थोंको आ्रादिसे चन्त
तक वाक्यसूचीके साथ मिलाकर छूटे हुए वाक्योंका पूर्ति की गई श्र.र जो वाक्य হত
जान पढ़े उन्हें ग्रंथके ५वोपर सम्बन्ध, प्राचीन प्रन्थंपरसे विषयक अनुसन्धान, विषयकी
संगति तथा कोप-व्याकरणाद्विकी सधायताके आधारपर शुद्ध करनेका भरसरूक प्रयत्न किया
गया, जिससे यह प्रंथ अधिकस धक प्रामाणिक रपम जनताके सामने आए और अपने
लप्त्य तथा रदे्यको टीक तौरपर पूरा फरनेमें समथे हो रूके । इतमंपर भो जका षी कुछ
सन्देद् रधा दै वहाँ ब्रकटमें प्रभाइु (() दे दिया “या है । जाँचके इस बायेने भी, जिसमें
पद्मर्के ऋम-परिवतेनकों भो अवछर मिला, दाफी समय ले लिया ओर इसमें भारी परिश्रम
ভহানা पड़ा है। इस बायमें न्यायादाय ঘ০ द्रबारालालजी कोठिया और प० परमानम्दजी
शास्त्रोका मरे साथ झास सहयोग रहा है । साथ दी, मूलपरसे संशोधने पं दीपचन्द्जी
पांड्या केकडी (अजगेर) ने भी कुछ्ठ भाग लिया है।
यहाँ प्रसंगानुरार में दस पाँच मुद्रित और दस्तलिखित मंथोंड्ी अशुद्धियोंके कुछ
ऐसे नमूने दे देना चाहता था जिन्हें इस वाक्यसूचोमें शुद्ध करके रक्झा गया है, जिससे
पाठकोंको सूचोके जाँचकायकी মক, অঁহীঘনক্ষী জুমলা (আাহীক্জী) और ग्रंथको यथाशक्ति
अधिकसे अधिक प्रामा णिकरुपमें प्रस्तुत करनंके लिये किये गए परिभ्रमकी गुरुताका कुछ
आभास मिज्ञ जाता; परन्तु \ ससे एक तो प्रस्तावनाका फलेवर अनावश्यकरुपमें बढ़ जाता;
दुसरे, तिन प्रकाशक प्रथो र प्रूदियोंको दिखलाया जाता उन्हें बह कुछ चुरा कगता-उनकी
कृतियोंकी आलोचना करना ণলী সংলাব भका विषय नदीं है; तीसरे, जो अ्रध्ययनशील
श्ननुभवी विदान् है वे मुद्रित-अमुद्वित मंथोंकी कितनी द्वी त्रुटियोंको पहलेसे जान रहे हैं और
डिन््हें नदों जान रहे हैं न वे इस प्रंथपरसे तुलना करके सहृजमें ही जान लेंगे, यही सब
सोचकर यहाँपर उयत॑ इच्छाका संवरण किया जाता है।
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