दिगम्बर जैन साहित्य में विकार | Digambar Jain Sahitya Men Vikar

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Digambar Jain Sahitya Men Vikar by विद्यानन्द मुनि -Vidyanand Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ गृहतों घुनिवनमित्वा गुहूपकष्ठे व्रतानि यण्गृद्य । भक््यागनस्तपस्य नुतष्टचेसक्षष्डयर ॥१४७॥। आजकल भुनिजत अवयारिर्द घम्र को छोड्कर प्रायः सििररों, सर्ठों तया गूहों रहने लगे हैं। यहाँ पर श्री मुल्यवार जो न प्रकरण से बाहर और निरावार्‌ वाव लिख कर टीका की सीमा का उतपन छ्षिया है प्रचोन कालम भी মুতে লাক যা তাজা লীগ ঘর परिवार त्यागों मुनियों को ठहरने मे' लिए पवरत्तों म गुफायें वगनिकाएँ तथा नगर क॑ निकट वसतिकायें बने जाया करत ये विहार करते हुए मुनिगण कुछ टिनितक उन वसतिकाओं में खर कर अयन्र विहार कर जात थे, कमी ह्षमी मा दरों में भी झुछ दिन ठहर कर अयत्र घले णाते ये। दक्षिण प्राग्ठ मं ऐठी सकडों गुफाएँ अमी तक बनी हुई हूँ, बुरा के पास सहड़ों गुफाएँ हैं। श्री धरसेत आचाय विदनार को धंद्धक गुफा में रहते थे । प्राचीन प्राल मे मुनि भक्त ताई शौर कुप्हार ने सम्मिलित रूप से अपने नगर के निकट एक वसतिका बनवाई थी । पुम्हार ने उस्त बच्तिका में एक सुनि महाराज को ठह्रा दिया था उसप्का साथी नाई दिगम्बर मुनि द्रपी था उसने उस कसतिक्ा मं ते मुनि महाराज को निकाल टिया । इस बात पर व दोनों परस्पर लड़ पढे और मर कर ये बन में सिह और सूमर हुए । ग्र पीकर ने इसो रल्तकरण्ड शरावकक्ार के ११७ वें दनात मं पूवमत्र म मुनिर्यों के लिए অমলিকা বলধান লাল उग मुनि भक्त सूकर वा हृष्टात आवास हटाने के विधय म॑ दिया है। जिने-” भक्त सेठ वी बह क्या मो प्रसिद्ध है जिधे क्षुलक् के क्पट वेषघारी घोर का सच्चा क्षुमत 6 समझ कर अपन धर के चत्यालय मे ढद्वराया था । इस कथा वा उल्तेख भी समतम्द्राचाय मे उपपुहत लग के हष्टात रूप मे २० में इचोक में किया है। इत्यादि प्रमाण से सिद्ध होता है कि प्राचीत समय मे भी गृह-्यागी मुनि गृट्स्थों क बनदाये हुए




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