कल्याण | kalyan

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kalyan by मोतीलाल जालान - Motilal Jalanहनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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मोतीलाल जालान - Motilal Jalan

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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद . का पीख्धरते 3 + समस्तस्मे वराद्य लीठयोद्धरते मददीमू # भंगवाद्‌ यज्ञ वराहकी पूजा एवं आराधन-विधि घेरा: कंस्याण वितरतु स चः कटत्पचिरसे चिनियुन्वज्लोदन्वनमुद्रकमुर्वीसुद वहन । खुराधाततरुस्यत्‌ . छुलशिखरिकूटमबिलुवजू- वराहपुराण ( अध्याय १२७-२८ )के दीक्षासूत्रमं साच्चिक 'गणान्तिका दौक्ष की विधि निर्दिष्ट है, पर वहाँ भगवान्‌ वराइकी सर पूजाविधि एवं मन्त्रादि नहीं हैं । बैसे दीक्षा एवं सन्त्रपर *अथातो दीक्षा कस्य'से न्राह्मण' आदि वैदिक प्रन्थोंमें भी पर्याप्त सामग्री है, पर इन्हें यहाँ अन्य पुराणों एवं आगमोंके अचुसार यज्ञ वराइविष्युकी आराधनांकी विधि देनेका प्रयन्न किया जा रहा है। पूजा- पूव दीक्षा आवश्यक है. । घातुपाठमें धातु बहुर्थक है और १६०१ पर पठित है । जेसे “अब? घातुके २१-२२ कथ हैं, बेसे ही इसके भी ५-६ हैं । इस प्रकार भी यह आगमोंके विचारका प्रमापक है । उनके अनुसार “दिव्य ज्ञान” दीक्षासे ही होता है--- दीयते. दिव्यचिज्ञान॑ _ झीयते. पापसंयः 1 अतो दीसेति सस्मोक्ता सुनिशिस्तत्वद्दिसिः ॥ पद्दाकपिल-पाश्वरात्रः तथा भी दीक्षा छावश्यक निर्दिष्ट है । पुस्तककों देखकर मन्त्र जपना सब्र हानिकारक बताया है--- पुस्तकालिखितों मन्दों येन खुन्दरि जप्यते । न तस्प जायते सिद्धहोनिरेव पदे पढ़े ॥ ( सहाकपिर पाह्० कुलान १५ । २२ ) फिर इसके वि”, 'शाम्मवा, इष्टिजनि 'निवाण', 'ब्ण!, 'पूरण, 'शक्तिपात आदि अ मेद उन आगमोंमें तथा 'वराहपुराण'में भी निर्दिष्ट है इनमें तत्काल पाश-पाप-सुक्तिपूवक दि मावकी प्राप्ति होती है और जीव साक्षात्‌ शिवखर हो जाता है-- युरूपदिष्रमा्गण ... देघे... कुयोद्िचिक्षण । पापसुक्त' क्षणाच्छिष्यदिछिन्नपाशस्तथा भवेत्‌ ॥ बाहमाब्यापारनिसुंक्तो भूमी पतति तत्क्षणात्‌! सर्च जानाति शाम्भवि ! चेघविद्धः शिवा साक्षान्न पुनर्जन्म्ता घ्जेत्‌ ॥' ( घडन्वयमहदारत्न; कुलाव १४ | ९०-१३ दीक्षानिधि सर्वत्र प्राय 'वराहपुराणक्रे' अ० है २७१ 'दीक्षासूत्रके समान ही निर्दि है । पर मन्त्रदीर्शा' राशिचक्र, 'अकडम' भादिं चक्रोंसे भी आवश्यक है । पर यदि खप्नमें कोई दीक्षा देता है तो उसमें किसी प्रकारके बिचारकी आवश्यकता नह है । इसी प्रकार सिद्ध देवता या दत्तानियादि पहिया द्वारा ध्यान, समाधि या प्रत्यक्ष-आप्त भी को! विचार आवश्यक नहीं है--- 'सिदसारखततन्त्रके अनुसार तो 'वाराइमतां भी ऋणि-धनी या अकडम, अकयद भादि दोधनकी आवश्यकता नहीं है--... | परम ४४८ पा 1 के (के) «(के ) दीक्ष--प्मौण्डेज्योपनयननियमत्रतदिशेषुः | नियम संयमः; ( म्वादिंगण ६०१ ) | | ख के ए1पंवाए8 स; अनुसार 'ताण्क्य-ज़ाइण २१४१८ सोमयाग; युद्ध, तत्परता व्यर्योगि भी यद दीक्ष घाठ प्रयुक्त है... ( ग ) “घातुकाब्यशकी “पदचन्द्रिकाः ब्याख्याके स्मनुसार ये मुख्य ही अनेक गु्ादिनन्दे ते त्रतमस्त्विति शासनाद्‌ । स्पाचार्यों दीक्षते वाग्मी यजमानस्व मगिवः ॥ त्तपसे से. मद बतमू ।? ( ₹ ! 5६०१की पंदचन्द्रिका ) । पऐतरिय न्ाहमण! ४। २५ ममिास्त आदि मदद माने ईै-ए करिए, पिन्‍्यें तन शादी हर मर्दर्षि जद कि ट्व्यि मावतना दर ह््मां दया 1 | उदाइरण महर्षि हैं | इन्दोनि झलक) यु प्रह्मदादिकों स्पर्थ-मात्रऐे दिव्य पदुचा 5? यूं कारण एवं क्ञानवद्धक हैं । यहुतसे मद्वपूर्ण रै८८ के बाद दिये गये हू, झा बाप




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