जिनागमकथासंग्रह | Jinaaghamkathasangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)~ ५ 1
बीचर्स किसो प्रकारका कार्यकारणभात्र है हो नहीं । किमु जैसे
आकर भी एक हो भाषाके शब्दोंके भिन्न सिद्ध उच्चारण
मालूम होते हैं--जैसे एक आसोीण ग्वाला जिस माधाका
अयोग करता है उसी भाषाका प्रयोग संस्कारापक्ष नागरिक भी
करता है, मात्र उच्चारणमें फरक रहना है, इसी कारणले उनको
कोद भिन्न भिन्न भाषके बोखनेवारे नहा कहना है--इसी
तरह समाजऊे आकुत्र लोग आकृत उच्चार करते हैं और नागरिक
लोग संश्कृत उच्चार करते है इससे ये दोनों भाषा भिन्न हैं ऐसा
कहनेका कौन साहस करेगा ! एक हो ससयमें श्राकृत और संस्कृतके
उच्चारका प्रवाह, इस प्रकार हमेशांसे ही चलना आ रहा है ।
इसमे कोई एक परवर्ती और दूसरा एक पुरोवर्ती ऐसा विभाग
ही नहीं है ।
अस्तु । प्राकृते भाषाके विद्यमान जेन साहिष्यमे भी आष
प्राकृक्े और देश्यप्राकृतके प्रयोगोंको भी ठीक टीक स्थान है।
और ऐसे भी संख्यातीत शब्दोंके प्रयोग हैं जिनका उच्चारण
बिलकुछ संस्कृतके समान होता है ।
जिस आकृत शब्दकी उत्पत्ति अर्थात् प्रकृतिप्रत्ययका विभाग
नहों हो सकता है, और जिस शब्दका अर्थ मात्र रूढी पर अब-
लंबित है, वेसे शब्दोंको देश्य प्राकृतं कहते हैं। हेमचंद्रादि
चैयाकरर्णोने पेसे शब्दको अब्युस्पन्न कोटिमें रक्ले हैँ । जैसे कि.-
छासी-(छाश), चोरली-(श्रावण मासकी व०दि० चतुर्देशी), चोढ-
(भिव) इध्यादि । ओर देश्य शब्दम ऐसे भी अनेक शब्द हैं जो
यौगिक ओर मिश्र होनेके कारण व्युप्पन्न जैसे मारछूम होते हैं।
४. देशीनाममाला छो, ३.
५. व० बहुल. दि० दिवस,
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