हिंदी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास | Hindi Jain Sahitya Ka Sanshipt Itihas

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Hindi Jain Sahitya Ka Sanshipt Itihas by कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[१ | उपक्रमणिका साहित्य श्र॒तज्ञान का अपर नाम है। मनुष्य ने मन से मति- पूर्वक मनन करके जो 'सत्यं शिव सुन्दरम? वाक्य विन्यास रचा अथवा प्रस्तर पाषाण या का धातु में कछामयी कृति की, वह सव साहित्य है। साहित्य सुन्दर सुखकर साकार ज्ञान है, इसी लिये मादित्य जीग्न साफल्य का साधन है । उसमें मानव अनुभूति के चमत्कृत संस्मरण सुरक्षित है, ओर जीवन-जागृति की ज्योति जाञ्च- न्यमान है । साहित्य सानव को सर्वतोभद्र, सर्वा्गपृणं ओर सुखी- स्वाधीन वनाने के टिये मुख्य साधन है । वह मुक्ति का सोपान है । जैन, “जिनः के अन्ुयायी को कहते ह ओर *जिनः वह महा- पुरुष हे जो नर से नारायण हुआ है, उसने अपने सत्य अध्यवसाय से राग छेप को जीत लिया हैं | वह आत्म-विजयी वीर है । सर्वज्ञ मर्वेदर्णी है। जैन तीथेकरों में सबसे अन्तिम भगवान महावीर ( वर्धमान ) एक सर्वज्ञ सर्वेदर्शी महापुरुष थे” । जैन साहित्य उन्हीं विश्वोपकारक महावीर की देन हे, उन्हों ने जो कहा वह सर्वागपूर्ण और सर्वोपयोगी कद्दा । उनका प्रवचन पूर्वापर-अविरुद्ध, १ निगण्ठो, बुष नादपुत्तो सन्वन्यु, सन्वदस्सावी अपरिसेसं भाण दह्सन परिजानाति---मज्म्िमनिकाय ( 0. 1, 5 , ५०1 1, ण, 92.98) के इस उद्धरण से জনা को मान्यता स्पष्ट होती हैं ।




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