भक्तामर कथा | Bhaktamar Katha
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about उदयलाल काशलीवाल - Udaylal Kashliwal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हेमदतकी कथा । ६
न बरी कीट:
[1 य
इसके वाद् देवीने देमदत्तसे कदा- महाशय, मेँ अव राजाको
जरा तकलीफ पहुँचाती हूँ । सो तुम जत्र भक्तामरके दो छोको द्वारा
जल मंत्रकर उसे राजा पर छींटोगे तव में उन्हे उससे मुक्त कर
दृग 1 यह कहकर देवी राजाके पास गई और राजांको सहसा
बीमार करके वह लोगोसे बोली--हिमदत्त सेठ यहां आकर अपना
मंत्रा हुआ जल राजा पर छौंटे तो बहुत शीघ्र आराम हो सकता
है। इसके सिया और उपाय करना व्यथ है ! ” देवीके कहे अजु-
सार हेमदत्त बुलवाये गये । उन्होने अपना मंत्रा हुआ जल राजा
पर छीटा 1 उसके वाद् उन्दं देखते देखते आराम हो गया । यह्
देख राजा उठकर देवीके पाँवोंमें गिर पड़े और वोले- मां, क्षमा
करो, न जानकर ही मैने आपका अपराध किया है । उत्तम पुरुष
अज्ञानी और वालको पर सदा क्षमा ही किया करते हैं। यह कह
कर राजाने देवीकों प्रणाम किया। देवी राजाकों आशिप देकर
चली गई।
हेमदत्तका फिर वखाभूपण से सूव सम्मान हुता । धमकी सूव
प्रभावना हुईं | वहुतोने जैनधर्म ग्रहण किया और जैनोकी अपने
धर्ममे श्रद्धा खूब दृढ़ हो गई ।
बुद्धया विनापि विधुधाचितपादपीठ !
स्तोतुं सप्नधतमतिविंगतत्रपोज्हम् ।
নাত विहाय जलसंस्थितमिन्दुविस्थ-
मन्यः; कृ इच्छति जनः सहसरा ग्रहीतुम ॥३॥
वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र ! शशाइकान्तान्
कस्ते क्षमः सुरणुरुप्रतिमोउपि बुद्धया ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...