तमिल वेद | Tamil Ved

Tamil Ved by श्री क्षेमानंद राहत - shree Kshemanand Rahat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहता दै जिसमें उत्सद के दिन मूर्ति की स्थाएना करके उसका जुलूप 'लिकाठते हैं । रथ में एक रस्सा चाँव दिया जाता है, जिले सैकड़ों लोग 'सिछ कर खींचते हैं । छोग टोछियाँ बना कर गाते हुए जाते हैं और कमी- कभी गातेनगाते सस्त जाते हैं । देवरमूर्नि के सामने साझा प्रणाम करते हैं सौर कोई कान पर हाथ रख कर उठते बेठ्ते हैं । जद भारती होती है, तब नाम रमरण करते हुए दोनों हाथों से अपने दोनों गा्ों को धीरे-धीरे थपधपाने ऊगते हैं । 'तामिछ नाइ'-यद्यपि प्राकृतिक सौन्दर्य से परिप्ठादितत हो रहा दै, पर 'अय्यज्ार जाति को छोड़ कर शारीरिक सौन्द्य॑ इन छोगों में बहुत कम देखने में आता है । शारीरिक शाक्ति में यह अब भी लाउं मेकाओे के ज़माने के बंगालियों के भाई ही बने हुए हैं । छोटी जातियों में तो साइस भर व पाया जाता दै, पर अपने को उ वा समझने दाठी ज्ञातियों में अर आर पौरुष की बड़ी कसी है। चावऊ इनका सुख्य लाह्ार है और उसे ही यह “अज्नमू” कहते हैं । गेहूं का व्यवहार न होने के कारण अनेक श्रक्ार के व्यंजचों से अमी तक ये अपरिचित ही रहे पर चावरलों के दी मॉतिनसाँति के व्यज्ञन वनाने में ये सुदक्ष हैं । पूरी को ये फाहार के समान गिनते हैं और 'रसम' इनका प्रिय पेय है, जो स्वादिष्ट और पाचक डोता है । थाली में यह खाना पसन्द नहीं ऊरते, केले के पत्ते पर भोजन करते हैं । इनके खाने का ढज् विचित्र दै । तामिक बहिनें पदां नहीं करतीं और न सारवाढ़ी-महिाओं की तरद ऊपर से नीचे तक गहनों से छदी हुई रहना पसन्द करती हैं । हाथों में दो एक चूड़ियें, नाक और क'न में इलके जवाहिरान से जड़े, थोड़े से जासूषग उनके छिए पर्याप्त हैं । दद्द नो गज की रंगीन साड़ी पढ़िनतीं हैं । कच्छ ठयाती हैं और सिर खुछा रखती हैं जो बाक़ायदा बैंवा रहता है भर जूड़े में प्रायः फूल गु था रहता है । केवक दिघवायें दो लिर को देंकती हैं । उनके वाछ काट दिये जाते हैं सौर सफेद साड़ी पहिनने को दी जाती है 1 बड़े घरानों की खियाँ भी प्रायः हाथ से दो घर का काम श्र




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