सूक्तियां | Suktiyan

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Suktiyan by नरेन्द्र भानावत - Narendra Bhanawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की खोज आत्मा मे तन्मय होने पर समाप्त हो जाती है। १०. ईश्वर को दूढनेके लिए इधर-उघर मत भटको । पृथ्वीतल बहुत विशाल है और तुम्हारे पास छोटे- छोटे दो पैर हैं। इनके सहारे तुम कहा-कहा पहुँच सकोगे ? फिर इतना समय भी तुम्हारे पास कहाॉ है ? मन को शान्त और स्वस्थ बनाओ । फिर देखोगे तो ईश्वर तुम्हारे ही निकट-निकटतर दिखाई देगा । ११. ईश्वर के विषय मे अगर सुहृढ विश्वास हो गया तो वह सभी जगह मिलेगा । विश्वास न हुआ तो कही नही मिलेगा । १२. विष्व के कल्याण में ही परमेश्वर का वास है। ससार के कल्याण की आन्तरिक कामना ही परमेश्वर का दर्शन कराती है। १३. दिल परमात्मा का घर है। परमात्मा मिलेगा तो दिल मे ही मिलेगा। दिल में नमिला तो कही नही मिलेगा । १४ चर्म-चक्षुओ से परमात्मा दिखाई नही देता तो इससे क्या हुआ, चर्मे-चक्षुओ के सिवाय हुदय- ३




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