मानव की माँग | Manav Ki Mang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिनाङ्क १२-६-१६५४. मेरे निजस्वरूप उपस्थित्त महानुभाव ! फल आपकी सवा में निवेदन किया था कि साधनयुक्त जीवन मानव-जीवन है। इस दृष्टि से हम सत्र साथक हैं । ओर, जो परिस्थिति हमें प्राप्त है, वह सब साधन-सामग्री हे। इस साधन-सामग्री फा उपयोग करना साधना ह । इस साधन के दो मुख्य पश्ंग हैं। एक तो बह साधन कि जिससे अपना कल्याण हो ओर दूसरा बह साधन कि जिससे सुन्दर समाजञ्ञ का निर्माण हो। अवना कल्याण ओर सुन्दर समाज का निर्माण, यह मानव-जीवन की वास्तविक माँग है । त्रा लाग इन दोनों विभागों को ज्ञीवन की मांग नहीं मानने, वे वास्तव में विवेश्द्रष्टि से मानवता को नहीं লাল | লানম-লীলন एक ऐसा महत्त्वपूणा जीवन ह£ कि लिसका पाइर प्राणी सगमतापूछ अपने अभीष्र लक्ष्य को प्राप्त << लता है | कारण कि मसानव-ज्ञीवचन म॑ एसी छाई प्रदुत्ति, अयनस्पा मु [^ वि ৮০ ॥ एयम परिम्पिति नहों है जो सायन नहीं हो. अर्थान यह वन १ রি भ সা সম মা युतः = नक ध ~~ जज নল নি সক ক লা সব জন্য সহ হালা চু নত টিনা কিনি प्म आधा हुयी




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